शाम घनेरी हो चली है
सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ
राह अंधेरी हो चली है
सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ
चाँदनी बिखरने लगी है
टूट कर रात की बाहों में
शबनम अब गाने लगी है
सूनी सूनी फिज़ाओं में
मावस की आहट लगी है
सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ
झुरमुटों में सरसराहट मची है
सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ
कल्पना रूठ कर चली है
कलम में हलचल मची है
मन स्वयंभू कवि है
सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ ।
©यशवन्त माथुर©
कल्पना रूठ कर चली है
ReplyDeleteकलम में हलचल मची है
मन स्वयंभू कवि है
सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ ।
बहुत सुन्दर लिखा है यशवंत विशेषकर ये पंक्तियाँ तो लाजबाब हैं
अरे वह सोचते-सोचते ही बहुत कुछ लिख दिया आपने तो...:)
ReplyDeleteकुछ भी हो ..
ReplyDeleteकवि तो लिखेगा ही.
आपकी उम्दा पोस्ट बुधवार (31-10-12) को चर्चा मंच पर | जरूर पधारें | सूचनार्थ |
ReplyDeleteचाँदनी बिखरने लगी है
ReplyDeleteटूट कर रात की बाहों में
शबनम अब गाने लगी है
सूनी सूनी फिज़ाओं में
बिम्बो का सुन्दर प्रयोग
ReplyDeleteकल्पना रूठ कर चली है
कलम में हलचल मची है
मन स्वयंभू कवि है
सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ
सोचने में इतना लिखे ,सोच लीजिएगा तो .........
बिना सोचे काफी कुछ लिखा है अब सोच कर लिखो :):)
ReplyDelete:-)
Deleteकल्पना रूठ कर चली है
ReplyDeleteकलम में हलचल मची है
मन स्वयंभू कवि है
सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ ।
Khoob Likha Hai....
मावस की आहट लगी है
ReplyDeleteसोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ
झुरमुटों में सरसराहट मची है
सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ,,,,,,
बहुत खूब सुंदर रचना,,,
RECENT POST LINK...: खता,,,
सुन्दर मनोभाव............
ReplyDeleteयूँ ही सृजन हुआ कविता का...
सस्नेह
अनु
कभी कभी सोच ही कब कविता बन जाती है पता ही नहीं चलता..
ReplyDeleteab to mai bhi soch rahi hun kuch likhu..... behtreen..
ReplyDeleteकुछ लिखने की सोचकर ही इतना अच्छा लिख दिया है..
ReplyDelete:-)
मन स्वयंभू कवि है, सच है !!!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना यशवंत जी ....
मन स्वयंभू कवि है, सच है !!!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना यशवंत जी ....
ऐसी परिस्तिथि से अक्सर दो चार होना पड़ता है
ReplyDelete
ReplyDeleteसोचते सोचते लिख ही गयी ये रचना .. :)
सुन्दर।
सादर
मधुरेश