ओ चाँद!
कोशिश करता हूँ
समझने की
अक्सर
तुम्हारी कहानी को
पूर्णिमा के दिन
जब तुम दिखते हो
किसी झरोखे से
पहाड़ों के बीच से
या ऊंचे पेड़ों की
किसी शाख के किनारे से
दिखाते हो एक झलक
मुस्कुराते हुए
बादलों के बीच
तुम्हारी लुका छिपी से
मैं कभी झल्ला भी जाता हूँ
पर
जब कभी देखता हूँ
तुम्हारी आँखों में आँखें डाल कर
ऐसा लगता है
जैसे धरती की गोद में
सिर रख कर
तुम रो पड़ोगे
ऐसा कौन सा दर्द है
जिसे अपने में समेटे
अँधेरे की चादर
ओढ़ लेते हो
ओझल हो जाते हो
अमावस की रातों में
आज बता दो
ओ चाँद !
मैं सुनना चाहता हूँ
तुम्हारी कहानी
करना चाहता हूँ
अटूट दोस्ती तुम से
तुम खामोश क्यों हो
क्यों नहीं सुन रहे
मेरी बातों को
अब चुभ सी रही है
तुम्हारी ये हंसी
कोई जवाब नहीं
आखिर क्यों
ये मौनव्रत
लिया है तुमने?
ओ चाँद!
तुम्हारी चांदनी के साये में
ओस की बूंदों जैसे
तुम्हारे आंसू
मेरे कन्धों पर गिर रहे हैं
मैं समझ रहा हूँ
फिर भी सुनना चाहता हूँ
तुम्हारी जुबां में
तुम्हारी कहानी को
बोलो न
आखिर कुछ तो कहो
ओ चाँद!
तुम खामोश क्यों हो?
©यशवन्त माथुर©
('परिकल्पना' पर पूर्व प्रकाशित यह पंक्तियाँ इस ब्लॉग के ड्राफ्ट में सहेजी हुई थीं। आज निगाह पड़ी तो अपने ब्लॉग पर भी प्रकाशित कर रहा हूँ। )
कोशिश करता हूँ
समझने की
अक्सर
तुम्हारी कहानी को
पूर्णिमा के दिन
जब तुम दिखते हो
किसी झरोखे से
पहाड़ों के बीच से
या ऊंचे पेड़ों की
किसी शाख के किनारे से
दिखाते हो एक झलक
मुस्कुराते हुए
बादलों के बीच
तुम्हारी लुका छिपी से
मैं कभी झल्ला भी जाता हूँ
पर
जब कभी देखता हूँ
तुम्हारी आँखों में आँखें डाल कर
ऐसा लगता है
जैसे धरती की गोद में
सिर रख कर
तुम रो पड़ोगे
ऐसा कौन सा दर्द है
जिसे अपने में समेटे
अँधेरे की चादर
ओढ़ लेते हो
ओझल हो जाते हो
अमावस की रातों में
आज बता दो
ओ चाँद !
मैं सुनना चाहता हूँ
तुम्हारी कहानी
करना चाहता हूँ
अटूट दोस्ती तुम से
तुम खामोश क्यों हो
क्यों नहीं सुन रहे
मेरी बातों को
अब चुभ सी रही है
तुम्हारी ये हंसी
कोई जवाब नहीं
आखिर क्यों
ये मौनव्रत
लिया है तुमने?
ओ चाँद!
तुम्हारी चांदनी के साये में
ओस की बूंदों जैसे
तुम्हारे आंसू
मेरे कन्धों पर गिर रहे हैं
मैं समझ रहा हूँ
फिर भी सुनना चाहता हूँ
तुम्हारी जुबां में
तुम्हारी कहानी को
बोलो न
आखिर कुछ तो कहो
ओ चाँद!
तुम खामोश क्यों हो?
©यशवन्त माथुर©
('परिकल्पना' पर पूर्व प्रकाशित यह पंक्तियाँ इस ब्लॉग के ड्राफ्ट में सहेजी हुई थीं। आज निगाह पड़ी तो अपने ब्लॉग पर भी प्रकाशित कर रहा हूँ। )
बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteतुमसे कुछ कहे चाँद तो हमें भी बताना....
सस्नेह
अनु
बहुत सुन्दर अहसास...शुभकामनाएं यशवंत..
ReplyDeleteoo chand...tum khamosh q ho??
ReplyDeleteKhubsoorat rachna...
बहुत सुंदर यशवंत...पूरी तरह अहसास से भरी ...
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना
ReplyDeleteख़ामोशी की जुबां से सबकुछ बोलता है चाँद... बहुत सुन्दर भाव... शुभकामनायें
ReplyDeleteशब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन..बहुत उम्दा रचना
ReplyDeleteI came on your blog though Google search and i read 2-3 of your blog post and found many useful post out there...thanks for sharing...and keep the good works going..
ReplyDeleteसुन्दर रचना !!!
ReplyDeleteख़ामोशी सजाता है चाँद :)
चाँद से अकेले बात करने में एक अनोखा आनंद मिलता है...
ReplyDeleteसुंदर रचना !
~God Bless!!!
ख़ामोशी को भी समझ पाना बहुत मुश्किल है
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चाँद सी रचना ...
ReplyDeleteइस ख़ामोशी में भी कितनी गुफ्तगू हो गयी चाँद से ..
ReplyDeleteसुन्दर।
सादर
मधुरेश
चाँद से सवाल-जवाब का सिलसिला बहुत भावपूर्ण है....
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति......