15 November 2012

ख्यालों के रास्ते

बढ़े अजीब होते हैं
ये ख्यालों के टेढ़े मेढ़े
रास्ते
जिन से गुज़र कर
गिरते उठते शब्द
बन बिगड़ कर
धर लेते हैं
कोई न कोई रूप 
और आखिरकार 
पा ही लेते हैं
अपनी मंज़िल

ख्यालों के
इन टेढ़े मेढ़े रास्तों पर चलना 
कभी शब्दों की
मजबूरी होती है
और कभी
स्वाभाविक इच्छा

क्योंकि
संघर्ष से ही
बिखरे शब्द
एक हो कर
रूप धरते हैं
गद्य या पद्य का। 

©यशवन्त माथुर©

11 comments:

  1. क्योंकि
    संघर्ष से ही
    बिखरे शब्द
    एक हो कर
    रूप धरते हैं
    गद्य या पद्य का।
    सटीक रचना..:-)

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  2. बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......

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  3. संघर्ष से ही बिखरे शब्द
    एक हो कर रूप धरते हैं
    गद्य या पद्य का ..

    या यूँ कहें, कि भावनाओं का ..
    बहुत बढ़िया,
    सादर

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  4. बिल्कुल सही

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  5. सच बात कही है आपने..संघर्ष वास्तव में सच्चे भाव को बाहर लाती है.

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  6. सत्य है !!!
    और सत्य भी बड़ी ख़ूबसूरती से बयाँ किया है आपने ....

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  7. सटीक बात ... संघर्ष से बिखरे शब्द ही कुछ कहते हैं ...

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  8. बहुत सुन्दर बात....यूँ ही तो सृजन नहीं होता अच्छी रचना का...
    सस्नेह
    अनु

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  9. डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"14 December 2012 at 13:05

    सार्थक रचना!

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  10. Bahut sundar

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  11. बहुत सुन्दर । बिलकुल सही बात कही आपने ।

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