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17 November 2012

कुछ लोग ऐसे भी हैं ......

न दो हाथ, न दो पैर, मगर जिंदगी जीते ही हैं
सर पे न हाथ,न साथ में साया किसी का
साँसों की मजबूरी, कि दर बदर घिसटते ही हैं
मेरे चारों ओर, कुछ लोग ऐसे भी हैं 

दिन मे तोड़ते हैं पत्थर,रात सड़क पे सोते ही हैं
खाते अमीरों की जूठन ,कीचड़ को पीते ही हैं
आसमां है जिनकी छत,तन पर चिथड़े ही हैं
मेरे चारों ओर, कुछ लोग ऐसे भी हैं

गुजरती रेलों,उड़ते जहाजों को देख कर
सजी धजी मेमों,सूटेड साहबों को देख कर
ये 'ज़ाहिल' भी साहिल के सपने देखते ही हैं
मेरे चारों ओर, कुछ लोग ऐसे भी हैं   । 
 

©यशवन्त माथुर©

10 comments:

  1. संवेदनशील रचना..

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  2. न दो हाथ, न दो पैर, मगर जिंदगी जीते ही हैं

    सर पे न हाथ,न साथ में साया किसी का

    साँसों की मजबूरी, कि दर बदर घिसटते ही हैं

    मेरे चारों ओर, कुछ लोग ऐसे भी हैं

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  3. गुजरती रेलों,उड़ते जहाजों को देख कर
    सजी धजी मेमों,सूटेड साहबों को देख कर
    ये 'ज़ाहिल' भी साहिल के सपने देखते ही हैं
    मेरे चारों ओर, कुछ लोग ऐसे भी हैं ।
    very nice HEART TOUCHING

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  4. कई लोग हैं ऐसे ...हम सबके चारों ओर...
    अनु

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  5. ऐसे लोग यत्र तत्र सर्वत्र मिल ही जाते है|

    Gyan Darpan

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  6. तुम्हारे ब्लॉग पर ये रुक जाना नहीं तू कहीं हार के ,का धीमे धीमे म्यूजिक बहुत सुकून देता है

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  7. बिलकुल सही लिखा है यशवंत बहुत दिल दुखता है जब ऐसे लोगों को देखती हूँ पर यहाँ सब को अपने अपने हिस्से का दुःख झेलना पड़ता है

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