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24 November 2012

फ़लस्तीन बच्चों के प्रति .......

इजरायल द्वारा फ़लस्तीन पर मिसाइल हमले जारी हैं। एक अनुमान के मुताबिक लगभग 80% फ़लस्तीन बच्चे तनाव के शिकार हो गए हैं। 

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के निदेशक श्री सुधाकर अदीब जी सहित कई मित्रों ने आज इस चित्र को फेसबुक पर शेयर किया है। 

इस चित्र को देख कर जो कुछ मन मे आया उसे शब्द देने की यह एक साधारण सी कोशिश है--
















रोता बचपन,
सिसकता बचपन
खुशी की तलाश में
भटकता बचपन

बम धमाकों की
सिहरन कंपन
खोते अपने
और नटखट पन

तोप गोलों की रार
काल बन
छीन रही चैन
चहकता उपवन

 आने से पहले यौवन
क्या नहीं देख रहा बाल मन
आकुलता व्याकुलता की  यूं
कब तक मार सहेगा बचपन

याद कर के
अपना बचपन
शायद कुछ तो
समझे दुश्मन

है कैसा यह
वहशीपन
रोता बचपन,
सिसकता बचपन

शांति की बाट
जोहता बचपन ।


©यशवन्त माथुर©

25 comments:

  1. ऑंसू कहां दि‍खाई देते हैं हथि‍यार बेचने वालों को

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  2. निः शब्द करते भाव !!!

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद इन्दु जी !


    सादर

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  4. खूबसूरत अभिव्यक्ति उस व्यथा की जिसको भोगने वाले व्यक्त नहीं कर पाते. सुन्दर रचना यशवंत भाई.

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  5. बहुत बहुत धन्यवाद निहार सर!

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  6. बहुत प्रभावी रचना

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद ओंकार सर!

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  8. disqus_pzl7EZDstC14 December 2012 at 13:04

    अत्यंत भावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी ... सुधाकर अदीब ।

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  9. बहुत बहुत धन्यवाद अदीब सर!

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  10. वहशीपन ही है यह और क्या कह सकते हैं बच्चों की आतंकित तस्वीरें देख कर आंख भर आई ।

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  11. बहुत बहुत धन्यवाद आंटी!

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  12. याद कर के
    अपना बचपन
    शायद कुछ तो
    समझे दुश्मन

    .....बहुत मर्मस्पर्शी रचना... दिल को छू गयी....

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  13. बहुत बहुत धन्यवाद अंकल।

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  14. आपकी कविता दिल को छू गयी....बड़ी बेबसी का एहसास है ये.....मर्मस्पर्शी.
    अनु

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  15. बहुत बहुत धन्यवाद दीदी !

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  16. बहुत बहुत धन्यवाद अंकल !


    2012/11/24 Disqus

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  17. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।

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  18. मेल पर प्राप्त टिप्पणी--


    दोनों पक्षों को ख्याल करना पड़ेगा-

    धर्मान्धता पाखण्ड से बचाना जरुरी है यह बचपन -

    माँ बाप और दुश्मन में कौन हितैषी हो सकता है इनका ??

    कटती मानव नाक है, दर्दनाक यह दृश्य |

    घटे धर्म की साख है, धर्म लगे अस्पृश्य |

    धर्म लगे अस्पृश्य, सुनों रे *धर्मालीकी |

    *धर्मध्वजी जा चेत, कर्म नहिं करो अलीकी |

    बचपन मन अनजान, बमों से जान सटकती |

    करो उपाय सटीक, नाक मानव की कटती ||

    dinesh gupta

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  19. सुमन कपूर14 December 2012 at 13:05

    no need of thnx Yashwant

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  20. बहुत बहुत धन्यवाद सुमन जी।

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  21. AAkho me aasu aa gaye :(

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  22. धन्यवाद नूपुर जी ।

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  23. सुमन कपूर14 December 2012 at 13:05

    बेहद मार्मिक यशवंत

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  24. मेल पर प्राप्त मधुरेश जी की टिप्पणी-

    यशवंत भाई, मैं भी आपके पोस्ट पर टिपण्णी नहीं कर पा रहा हूँ/..
    हालाँकि
    फलस्तीनी बच्चों के मर्म को जिस तरीके से आपने लिखा है, वो वाकई दिल को
    छोटी है .. हम सभी बस यही कामना कर सकते हैं कि ये समस्याएं जल्द-से-जल्द
    ख़त्म हो जाएँ ...
    सादर
    मधुरेश

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