इजरायल द्वारा फ़लस्तीन पर मिसाइल हमले जारी हैं। एक अनुमान के मुताबिक लगभग 80% फ़लस्तीन बच्चे तनाव के शिकार हो गए हैं।
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के निदेशक श्री सुधाकर अदीब जी सहित कई मित्रों ने आज इस चित्र को फेसबुक पर शेयर किया है।
इस चित्र को देख कर जो कुछ मन मे आया उसे शब्द देने की यह एक साधारण सी कोशिश है--
रोता बचपन,
सिसकता बचपन
खुशी की तलाश में
भटकता बचपन
बम धमाकों की
सिहरन कंपन
खोते अपने
और नटखट पन
तोप गोलों की रार
काल बन
छीन रही चैन
चहकता उपवन
आने से पहले यौवन
क्या नहीं देख रहा बाल मन
आकुलता व्याकुलता की यूं
कब तक मार सहेगा बचपन
याद कर के
अपना बचपन
शायद कुछ तो
समझे दुश्मन
है कैसा यह
वहशीपन
रोता बचपन,
सिसकता बचपन
शांति की बाट
जोहता बचपन ।
©यशवन्त माथुर©
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के निदेशक श्री सुधाकर अदीब जी सहित कई मित्रों ने आज इस चित्र को फेसबुक पर शेयर किया है।
इस चित्र को देख कर जो कुछ मन मे आया उसे शब्द देने की यह एक साधारण सी कोशिश है--
रोता बचपन,
सिसकता बचपन
खुशी की तलाश में
भटकता बचपन
बम धमाकों की
सिहरन कंपन
खोते अपने
और नटखट पन
तोप गोलों की रार
काल बन
छीन रही चैन
चहकता उपवन
आने से पहले यौवन
क्या नहीं देख रहा बाल मन
आकुलता व्याकुलता की यूं
कब तक मार सहेगा बचपन
याद कर के
अपना बचपन
शायद कुछ तो
समझे दुश्मन
है कैसा यह
वहशीपन
रोता बचपन,
सिसकता बचपन
शांति की बाट
जोहता बचपन ।
©यशवन्त माथुर©
ऑंसू कहां दिखाई देते हैं हथियार बेचने वालों को
ReplyDeleteसही कहा सर!
ReplyDeleteनिः शब्द करते भाव !!!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद इन्दु जी !
ReplyDeleteसादर
खूबसूरत अभिव्यक्ति उस व्यथा की जिसको भोगने वाले व्यक्त नहीं कर पाते. सुन्दर रचना यशवंत भाई.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद निहार सर!
ReplyDeleteबहुत प्रभावी रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ओंकार सर!
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी ... सुधाकर अदीब ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अदीब सर!
ReplyDeleteवहशीपन ही है यह और क्या कह सकते हैं बच्चों की आतंकित तस्वीरें देख कर आंख भर आई ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आंटी!
ReplyDeleteयाद कर के
ReplyDeleteअपना बचपन
शायद कुछ तो
समझे दुश्मन
.....बहुत मर्मस्पर्शी रचना... दिल को छू गयी....
बहुत बहुत धन्यवाद अंकल।
ReplyDeleteआपकी कविता दिल को छू गयी....बड़ी बेबसी का एहसास है ये.....मर्मस्पर्शी.
ReplyDeleteअनु
बहुत बहुत धन्यवाद दीदी !
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अंकल !
ReplyDelete2012/11/24 Disqus
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
ReplyDeleteमेल पर प्राप्त टिप्पणी--
ReplyDeleteदोनों पक्षों को ख्याल करना पड़ेगा-
धर्मान्धता पाखण्ड से बचाना जरुरी है यह बचपन -
माँ बाप और दुश्मन में कौन हितैषी हो सकता है इनका ??
कटती मानव नाक है, दर्दनाक यह दृश्य |
घटे धर्म की साख है, धर्म लगे अस्पृश्य |
धर्म लगे अस्पृश्य, सुनों रे *धर्मालीकी |
*धर्मध्वजी जा चेत, कर्म नहिं करो अलीकी |
बचपन मन अनजान, बमों से जान सटकती |
करो उपाय सटीक, नाक मानव की कटती ||
dinesh gupta
no need of thnx Yashwant
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सुमन जी।
ReplyDeleteAAkho me aasu aa gaye :(
ReplyDeleteधन्यवाद नूपुर जी ।
ReplyDeleteबेहद मार्मिक यशवंत
ReplyDeleteमेल पर प्राप्त मधुरेश जी की टिप्पणी-
ReplyDeleteयशवंत भाई, मैं भी आपके पोस्ट पर टिपण्णी नहीं कर पा रहा हूँ/..
हालाँकि
फलस्तीनी बच्चों के मर्म को जिस तरीके से आपने लिखा है, वो वाकई दिल को
छोटी है .. हम सभी बस यही कामना कर सकते हैं कि ये समस्याएं जल्द-से-जल्द
ख़त्म हो जाएँ ...
सादर
मधुरेश