फिर एक नया पड़ाव
फिर एक नया मोड़
एक नया रास्ता
फिर एक नया दौर
उसी पुराने सफर का
जिसका सिलसिला
चलता चला आ रहा है
तेज़ रफ्तार दौड़ती
वक़्त की इस बस मे बैठा
बस यही सोच रहा हूँ
भोथरी होती
कलम की नोंक की तरह
बदलाव की आस लिये
यह जीवन भी
कभी देखेगा
अपना अंतिम दिन।
©यशवन्त माथुर©
बढ़िया प्रस्तुति !
ReplyDeleteगहन प्रस्तुति....
ReplyDeleteमगर कुछ नकारात्मक से भाव लगे...क्यूँ भई???
सस्नेह
अनु
behtreen ..... ab soch kuch bhee soch leti hain aksar .
ReplyDeleteबहुत ही गहरी बात ! सच्ची अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteवक्त की बस...कभी तो थमेगी रफ़तार... सुंदर भाव
ReplyDeleteजब पुराने सफर में फिर से नया नया कुछ आ रहा है ...तो जीवन बदलाव की और ही तो है ...और अंतिम कभी कुछ नही होता ....फिर ....रात के आ जाने से दिन का अंत कहाँ होता है ....//
ReplyDeleteगहनता लिए ....
safar ... bahut achchha laga yashvant ji . aise khyaal safar ke dauran hi aate hain .. jindagi kya hai , kaisi hai ... bahut sundar rachna.
ReplyDeleteबेहतर लेखनी !!!
ReplyDeleteजीवन एक सफ़र ही तो है, जो चलता रहता है, और चलते रहना ही जीवन है ... शुभकामनायें
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeleteहर नया मोड़ एक आस लेकर आता है..भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है यशवंत जी .बधाई (बस में .....)
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति......
ReplyDeleteबढिया रचना, बधाई यशवंत जी,,,
ReplyDeleterecent post हमको रखवालो ने लूटा
बहुत मर्मस्पर्शी...
ReplyDeleteकुछ नया दिखे ...यही कामना है ....
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