13 December 2012

सफर


फिर एक नया पड़ाव
फिर एक नया मोड़
एक नया रास्ता
फिर एक नया दौर
उसी पुराने सफर का
जिसका सिलसिला
चलता चला आ रहा है

तेज़ रफ्तार दौड़ती
वक़्त की इस बस मे बैठा
बस यही सोच रहा हूँ
भोथरी होती
कलम की नोंक की तरह 
बदलाव की आस लिये
यह जीवन भी
कभी देखेगा
अपना अंतिम दिन।

©यशवन्त माथुर©

16 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति !

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  2. गहन प्रस्तुति....
    मगर कुछ नकारात्मक से भाव लगे...क्यूँ भई???

    सस्नेह
    अनु

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  3. behtreen ..... ab soch kuch bhee soch leti hain aksar .

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  4. बहुत ही गहरी बात ! सच्ची अभिव्यक्ति !!

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  5. वक्‍त की बस...कभी तो थमेगी रफ़तार... सुंदर भाव

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  6. जब पुराने सफर में फिर से नया नया कुछ आ रहा है ...तो जीवन बदलाव की और ही तो है ...और अंतिम कभी कुछ नही होता ....फिर ....रात के आ जाने से दिन का अंत कहाँ होता है ....//
    गहनता लिए ....

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  7. safar ... bahut achchha laga yashvant ji . aise khyaal safar ke dauran hi aate hain .. jindagi kya hai , kaisi hai ... bahut sundar rachna.

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  8. जीवन एक सफ़र ही तो है, जो चलता रहता है, और चलते रहना ही जीवन है ... शुभकामनायें

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  9. हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.

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  10. हर नया मोड़ एक आस लेकर आता है..भावपूर्ण प्रस्तुति...

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  11. बहुत अच्छी रचना है यशवंत जी .बधाई (बस में .....)

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  12. भावपूर्ण प्रस्तुति......

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  13. बहुत मर्मस्पर्शी...

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  14. कुछ नया दिखे ...यही कामना है ....

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