कल अचानक एक पुरानी डायरी का पन्ना मिल गया । इस पन्ने पर 4 अगस्त 2000 को राधा बल्लभ इंटर कॉलेज दयालबाग आगरा (तब मैं कक्षा -11 का छात्र था) के क्लास रूम की स्थिति पर लिखी मेरी पंक्तियाँ दर्ज़ हैं।यह पंक्तियाँ एकाउंटेंसी (बालमुनी कश्यप सर) के पीरियड के बाद वाले खाली पीरियड मे अपनी सीट पर लिखी थी। हालांकी यह कॉलेज अपने अनुशासन और पढ़ाई के लिये आगरा मे प्रसिद्ध है फिर भी हमारे साथी मौका देखते ही 'अपनी' पर आ ही जाते थे :)
इन पंक्तियों को बिना किसी सुधार के उस पन्ने से उतार कर जस का तस आज अपने ब्लॉग पर भी प्रस्तुत कर रहा हूँ---
सोचो दोस्तों
हम किधर जा रहे हैं
क्लास मे बैठ के
फिल्मी गाना गा रहे हैं।
सामने हमारे
'सर' पढ़ा रहे हैं
लेकिन हम उनकी
हंसी उड़ा रहे हैं।
पूछते जब वो हैं कुछ
बता नहीं पाते हम
इसी वजह से रोज़
डंडे खूब खाते हम।
कॉलेज आते हैं
घर से कुछ खा कर नहीं हम
लेट हो कर इसीलिए
डंडे खूब खाते हम ।
सोचो दोस्तों
किधर जा रहे हैं हम
विद्या के मंदिर को
मूंह चिढ़ा रहे हम ।
सोच लो विचार लो
दृढ़ निश्चय ठान लो
सब से बड़ी विद्या है
मन मे बैठाल लो।
©यशवन्त माथुर©
इन पंक्तियों को बिना किसी सुधार के उस पन्ने से उतार कर जस का तस आज अपने ब्लॉग पर भी प्रस्तुत कर रहा हूँ---
सोचो दोस्तों
हम किधर जा रहे हैं
क्लास मे बैठ के
फिल्मी गाना गा रहे हैं।
सामने हमारे
'सर' पढ़ा रहे हैं
लेकिन हम उनकी
हंसी उड़ा रहे हैं।
पूछते जब वो हैं कुछ
बता नहीं पाते हम
इसी वजह से रोज़
डंडे खूब खाते हम।
कॉलेज आते हैं
घर से कुछ खा कर नहीं हम
लेट हो कर इसीलिए
डंडे खूब खाते हम ।
सोचो दोस्तों
किधर जा रहे हैं हम
विद्या के मंदिर को
मूंह चिढ़ा रहे हम ।
सोच लो विचार लो
दृढ़ निश्चय ठान लो
सब से बड़ी विद्या है
मन मे बैठाल लो।
©यशवन्त माथुर©
Tab se hi aapke andar itna sundar kavi chhipa tha... :)
ReplyDeleteKhubsurat panktiya yashwant ji :)
बहुत सुन्दर कविता |भाई यशवंत जी नया साल मुबारक हो |
ReplyDeleteकविताई का शौक पुराना है :)
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (22-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteसूचनार्थ!
सोच लो विचार लो
ReplyDeleteदृढ़ निश्चय ठान लो
सब से बड़ी विद्या है
मन मे बैठाल लो।
होनहार बिरवान के होत चीकने पात .... (y)
पूत का पाँव पालने में ही दिखने लगते हैं .... !!
:)
ReplyDeleteसोच लो विचार लो
ReplyDeleteदृढ़ निश्चय ठान लो
सब से बड़ी विद्या है
मन मे बैठाल लो।
अलमस्ती के माहौल में भी बहुत गहरी बात कह डाली.
majedar kavita hai Yashwant bhai .
ReplyDeletecollege ke din yaad dila diye aapne :)
college ke din yaad aa gaye bhaai . bahut achchhi kavita .
ReplyDeleteवाह...शुरुआत भी इतनी शानदार है... शुभकामनाये
ReplyDeleteअपना समय याद आ गया ...:)
ReplyDeleteस्कूल के खट्टे- मीठे से दिन , भुलाये नहीं भूलते ...
ReplyDeletekavita acchi lagi.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता,,,
ReplyDeleteअफ़सोस है की मेरी कालेज समय की डायरी गुम गई,,
recent post: वजूद,
बहुत ही अच्छी कविता...अभी भी बच्चे ऐसा ही करते है..
ReplyDelete:-)
sach mein KIDHAR jaa rahe hain ham :)
ReplyDeleteपुराणी लेकिन १०० प्रतिशत खरी
ReplyDeleteसुन्दर रचना
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