अभावों के भाव
इसी मौसम में बढ़ते हैं
जब ‘नाम’ की उम्मीद में भाव
दर दर भटकते हैं
कहीं कंबल ऊनी
कहीं कागजी दुशाले हैं किस्मत में
रैन बसेरों में
सीले अलाव भी ठिठुरते हैं
हैं वो ही ‘यशवंत’
जो बंद कमरों में बैठ कर
आरंभ से अंत तक
बेतुकी लिखा करते हैं
अभावों के भाव
इसी मौसम में बढ़ते हैं
जब भरी धूप में भाव
बर्फ से जमते हैं ।
©यशवन्त माथुर©
इसी मौसम में बढ़ते हैं
जब ‘नाम’ की उम्मीद में भाव
दर दर भटकते हैं
कहीं कंबल ऊनी
कहीं कागजी दुशाले हैं किस्मत में
रैन बसेरों में
सीले अलाव भी ठिठुरते हैं
हैं वो ही ‘यशवंत’
जो बंद कमरों में बैठ कर
आरंभ से अंत तक
बेतुकी लिखा करते हैं
अभावों के भाव
इसी मौसम में बढ़ते हैं
जब भरी धूप में भाव
बर्फ से जमते हैं ।
©यशवन्त माथुर©
अभावों के भाव
ReplyDeleteइसी मौसम में बढ़ते हैं
जब भरी धूप में भाव
बर्फ से जमते हैं ।
सच्चाई !!
शुभकामनायें !!
"बेतुकी" ही सही लेकिन लिखते रहिये यशवंत भाई. हो पानी या मन के भाव , दोनों का बहना जरूरी है.शुभकामनाएं.
ReplyDeleteहैं वो ही ‘यशवंत’
ReplyDeleteजो बंद कमरों में बैठ कर
आरंभ से अंत तक
बेतुकी लिखा करते हैं
मजेदार पंक्तियाँ.....वाकई तुक कभी गर मिला नहीं
तो सारा लिखा व्यर्थ हो जाता है
मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअभावों के भाव
ReplyDeleteइसी मौसम में बढ़ते हैं
जब भरी धूप में भाव
बर्फ से जमते हैं ।
आज कल सबकी संवेदनाएं जमी हुई हैं ... सुंदर और गहन भाव लिए हुये अच्छी रचना
बढ़िया है-
ReplyDeleteबधाई यशवंत ||
हैं वो ही ‘यशवंत’
ReplyDeleteजो बंद कमरों में बैठ कर
आरंभ से अंत तक
बेतुकी लिखा करते हैं ..
क्या बात है यशवंत जी ... बहुत खूब ...
क्या कहे और किससे कहें हम जब मंदिर में भगवान गरम कपड़ों में होते हैं, और वहीँ द्वार पर कई ठण्ड से मरते हैं ... मार्मिक प्रस्तुति... शुभकामनायें
ReplyDelete‘नाम’ की उम्मीद में भाव
ReplyDeleteदर दर भटकते हैं,... सच,..और सुन्दर
सुंदर, सटीक पंक्तियाँ
ReplyDeletesahi kaha aapne...jab esi sardi me chhote chhote bacchho ko thiturta dekhti hu to dil bhar aata h mera bhi....
ReplyDeleteमेल पर प्राप्त टिप्पणी -
ReplyDeleteindira mukhopadhyay
' अभावों के भाव
इसी मौसम में बढ़ते हैं.....................' बहुत सुन्दर यशवंत।