जब चला
तो सोचा था
कि इन राहों पर
बिछे होंगे
नये ताज़े
खुशबूदार फूल
कुछ लाल
कुछ पीले
कुछ बहुरंगी फूल
मैं चला
तो मेरे स्वागत में
फूल
बिछे भी थे
मखमल के
गुदगुदे बिस्तर की तरह
जिस पर चलने का
सुनहरा एहसास
होता हो
शायद ही किसी को
मैं सीना तानकर
मुस्कुराकर
चल रहा था
अपने गुरूर में
पर यह नशा
यह सुख
क्षणिक था
स्थायी नहीं
फूलों की सुंदरता
ताजगी
और नयी खुशबू
अब खोती जा रही है
नयी कलियों के
खिलने के इंतज़ार में
जिंदगी फिर भी
चलती जा रही है।
©यशवन्त माथुर©
तो सोचा था
कि इन राहों पर
बिछे होंगे
नये ताज़े
खुशबूदार फूल
कुछ लाल
कुछ पीले
कुछ बहुरंगी फूल
मैं चला
तो मेरे स्वागत में
फूल
बिछे भी थे
मखमल के
गुदगुदे बिस्तर की तरह
जिस पर चलने का
सुनहरा एहसास
होता हो
शायद ही किसी को
मैं सीना तानकर
मुस्कुराकर
चल रहा था
अपने गुरूर में
पर यह नशा
यह सुख
क्षणिक था
स्थायी नहीं
फूलों की सुंदरता
ताजगी
और नयी खुशबू
अब खोती जा रही है
नयी कलियों के
खिलने के इंतज़ार में
जिंदगी फिर भी
चलती जा रही है।
©यशवन्त माथुर©
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteशुभकामनायें-
गहन भाव... सुन्दर रचना
ReplyDeleteनई कलियाँ अब भी बिछी हैं नजर उठाकर देखने की देर है...सुंदर रचना!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (26-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
फूलों की सुंदरता
ReplyDeleteताजगी
और नयी खुशबू
अब खोती जा रही है
नयी कलियों के
खिलने के इंतज़ार में
जिंदगी फिर भी
चलती जा रही है।
चैये चार कदम बाद आपको बात समझ में तो आ गई . वरना लोग ज़िन्दगी गुजार देते हैं
sundar Abhvyakti....
ReplyDeletehttp://ehsaasmere.blogspot.in/2013/01/blog-post_26.html
मुरझाये फूलों में खुशबू न सही ...यादें तो बसी रहती है...ऐसे ही थोड़ी किताबों कि तह में वह मिलते हैं
ReplyDeleteसुन्दर रचना. जीवन उन्मादी सरिता ही है.
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