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25 January 2013

जिंदगी फिर भी चलती जा रही है।

जब  चला
तो सोचा था
कि इन राहों पर
बिछे होंगे
नये ताज़े
खुशबूदार फूल
कुछ लाल
कुछ पीले
कुछ बहुरंगी फूल

मैं चला
तो मेरे स्वागत में
फूल 
बिछे भी थे
मखमल के
गुदगुदे बिस्तर की तरह 
जिस पर चलने का
सुनहरा एहसास
होता हो
शायद ही किसी को

मैं सीना तानकर
मुस्कुराकर
चल रहा था
अपने गुरूर में
पर यह नशा
यह सुख
क्षणिक था
स्थायी नहीं

फूलों की सुंदरता
ताजगी
और नयी खुशबू
अब खोती जा रही है
नयी कलियों के
खिलने के इंतज़ार में 
जिंदगी फिर भी
चलती जा रही है।

©यशवन्त माथुर©

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर ...

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  2. शुभकामनायें-

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  3. गहन भाव... सुन्दर रचना

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  4. नई कलियाँ अब भी बिछी हैं नजर उठाकर देखने की देर है...सुंदर रचना!

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  5. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (26-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  6. फूलों की सुंदरता
    ताजगी
    और नयी खुशबू
    अब खोती जा रही है
    नयी कलियों के
    खिलने के इंतज़ार में
    जिंदगी फिर भी
    चलती जा रही है।

    चैये चार कदम बाद आपको बात समझ में तो आ गई . वरना लोग ज़िन्दगी गुजार देते हैं

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  7. sundar Abhvyakti....
    http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/01/blog-post_26.html

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  8. मुरझाये फूलों में खुशबू न सही ...यादें तो बसी रहती है...ऐसे ही थोड़ी किताबों कि तह में वह मिलते हैं

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  9. सुन्दर रचना. जीवन उन्मादी सरिता ही है.

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