सड़कों पर गूँजते नारे
हक की बुलंद आवाज़ें
गुस्सा,आक्रोश,जुनून,
सब थम जाता है
चीखता गला
थक जाता है
किये धरे पर पानी
फिर जाता है....
शरीर पर चटकती
पुलिस की लाठीयों से नहीं ...
सड़क पर बहते
खून की धार से नहीं....
बल्कि मशीन पर लगे
उस नीले बटन से
जब चुनाव आता है
वोट उसी को जाता है
जो हम को सताता है
क्योंकि
जात,धर्म का दृष्टि दोष
हमें देखने नहीं देता
काले चश्मे के
उस पार!
©यशवन्त माथुर©
हक की बुलंद आवाज़ें
गुस्सा,आक्रोश,जुनून,
सब थम जाता है
चीखता गला
थक जाता है
किये धरे पर पानी
फिर जाता है....
शरीर पर चटकती
पुलिस की लाठीयों से नहीं ...
सड़क पर बहते
खून की धार से नहीं....
बल्कि मशीन पर लगे
उस नीले बटन से
जब चुनाव आता है
वोट उसी को जाता है
जो हम को सताता है
क्योंकि
जात,धर्म का दृष्टि दोष
हमें देखने नहीं देता
काले चश्मे के
उस पार!
©यशवन्त माथुर©
उम्मीद है कि इस बार सोच के दबाएंगे बटल को लोग
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteशुभकामनायें ||
जागना होगा जनता को अपने कर्तव्यों के प्रति, नहीं तो यही सब होता रहेगा, आखिर शिकायत किससे करेंगे हम चुना तो हमने ही है इन्हें... सशक्त अभिव्यक्ति ...शुभकामनायें
ReplyDeleteयह जात धर्म का दृष्टिदोष है या कुर्सी की माया...की हर इंसान उसें पाकर ऐसा हो जाता है .....सटीक प्रस्तुति
ReplyDeleteसटीक रचना....
ReplyDeleteजात,धर्म का दृष्टि दोष
ReplyDeleteहमें देखने नहीं देता
काले चश्मे के
उस पार!
BUT WHY?
सुंदर सटीक प्रस्तुति,,,
ReplyDeleterecent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...