आज
खुल ही गयी गांठ
एक बहुत भारी गठरी की
जिसमें सदियों से बंद
तमाम विषय
अब इधर उधर बिखर कर
मन के कमरे में उछल कूद कर
मना रहे हैं जश्न
बंधन से आज़ाद होने का।
अब तलाश है तो बस
किसी अच्छे डिटर्जेंट की
जो कर सके साफ
जंग लगी सोच के धरातल को
जिससे ये हरे भरे विषय
ले सकें खुल कर सांस
शब्दों में ढल कर
किसी किताब के पन्नों पर!
©यशवन्त माथुर©
खुल ही गयी गांठ
एक बहुत भारी गठरी की
जिसमें सदियों से बंद
तमाम विषय
अब इधर उधर बिखर कर
मन के कमरे में उछल कूद कर
मना रहे हैं जश्न
बंधन से आज़ाद होने का।
अब तलाश है तो बस
किसी अच्छे डिटर्जेंट की
जो कर सके साफ
जंग लगी सोच के धरातल को
जिससे ये हरे भरे विषय
ले सकें खुल कर सांस
शब्दों में ढल कर
किसी किताब के पन्नों पर!
©यशवन्त माथुर©
Surf Excel hain na ;)
ReplyDeleteजंग हटाने के लिए ,खुद से करलो जंग
ReplyDeleteकरत करत अभ्यास के, निखर उठेगा रंग ||
FB pe padh li thi.. Achhi abhivyakti hai Yashwant bhai..
ReplyDeleteSankranti ki shubhkaamnayen!
गांठें खुल जाएँ यही बहुत है .... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteउम्दा रचना
ReplyDeleteडॉ सोप लो पहले यूज़ तब विशवास करो ........
ReplyDeleteये तो मज़ाक था ........
आप बेहतरीन लिखते हैं .......
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 15/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना....
ReplyDeleteसस्नेह
अनु
भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteमकर संक्रांति की शुभकामनाएँ...
बढ़िया रचना !
ReplyDeleteNew post: कुछ पता नहीं !!!
New post : दो शहीद
बहुत . सुंदर प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत खूब.. जंग लगी सोच के धरातल को वाकई अब साफ करना होगा...
ReplyDeleteSundar abhivyakti ....
ReplyDeleteजंग लगी सोच के धरातल को
जिससे ये हरे भरे विषय
ले सकें खुल कर सांस
बढ़िया ......
ReplyDelete