बदतमीज़ सपने
रोज़ रात को
चले आते हैं
सीना तान कर
और सुबह होते ही
निकल लेते हैं
मूंह चिढ़ा कर
क्योंकि
बंद मुट्ठी का
छोटा सा कमरा
कमतर है
बड़े सपनों की
हैसियत के सामने।
©यशवन्त माथुर©
रोज़ रात को
चले आते हैं
सीना तान कर
और सुबह होते ही
निकल लेते हैं
मूंह चिढ़ा कर
क्योंकि
बंद मुट्ठी का
छोटा सा कमरा
कमतर है
बड़े सपनों की
हैसियत के सामने।
©यशवन्त माथुर©
सार्थक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसपने तो सपने होते है...
ReplyDeleteशुभप्रभात बेटे :))
ReplyDeleteबहुत बढ़िया (y)
शुभकामनायें !!
वाह चंद शब्दों में कितनी बड़ी सच्चाई ,बहुत बहुत शुभ कामनाएं
ReplyDeleteसपने कभी तो मुकम्मल होंगे
ReplyDeleteबदतमीज़ सपने
ReplyDeleteरोज़ रात को
चले आते हैं
सीना तान कर
और सुबह होते ही
निकल लेते हैं
मूंह चिढ़ा कर
क्योंकि
बंद मुट्ठी का
छोटा सा कमरा
कमतर है
बड़े सपनों की
हैसियत के सामने।
सपने ही सच होते हैं रही बात कमरे की तो कमर नहीं कायनात छोटी पड़ जाती है इन्हें संजोने के लिये . खुबसूरत और दिल में उतरने वाली
अति सुन्दर ,भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeletebahut achchi rachna yashwant....:)
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 29/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteसपने देखना बहुत जरुरी है, देखेंगे तभी तो पूरे होंगे ना... शुभकामनायें
ReplyDeleteसपने तो सपने ही होते हैं उन्हें तमीज सिखाए कौन |उनपर नहीं होता नियंत्रण क्यूँ कि वे स्वतंत्र होते हैं |
ReplyDeleteउम्दा कविता है यशवंत जी
सपनो के लिये मन का आकाश पर्याप्त है !
ReplyDeletewaah kya baat hai....kalam ne sapno ko bhi pakad liya.
ReplyDeletewaah, asaan si lagne wali gehan rachna.
ReplyDeleteshubhkamanyen