(चित्र आदरणीय अफलातून जी की फेसबुक वॉल से ) |
सपने 'ये' भी देखते हैं
सपने 'वो' भी देखते हैं
'ये' इस उमर में कमाते हैं
दो जून की रोटी जुटाते हैं
जुत जुत कर रोज़
कोल्हू के बैल की तरह
'उनको' निहार कर
'ये' बस मुस्कुराते हैं
'इनको' पता है कि दुनिया
असल में होती क्या है
रंगीन तस्वीरें हैं
मगर अक्स स्याह है
'इनके' सपनों की दुनिया में
'उनकी' बे परवाह मस्ती है
'ये' दर्द को पीते हैं
और 'उनकी' आह निकलती है
सपने 'ये' भी देखते हैं
सपने 'वो' भी देखते हैं
बस 'ये' ज़मीं पे चलते हैं
और 'वो' आसमां में उड़ते हैं।
©यशवन्त माथुर©
सपने 'ये' भी देखते हैं
ReplyDeleteसपने 'वो' भी देखते हैं
बस 'ये' ज़मीं पे चलते हैं
और 'वो' आसमां में उड़ते हैं।
सटीक पंक्तियाँ
सपने 'ये' भी देखते हैं
ReplyDeleteसपने 'वो' भी देखते हैं
बस 'ये' ज़मीं पे चलते हैं
और 'वो' आसमां में उड़ते हैं।
hakikat bayan karti sundar rachna!
New post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
New post: कुछ पता नहीं !!!
बहुत अच्छी लगी यह रचना यशवंत भाई.
ReplyDeleteसुंदर तुलनात्मक विश्लेषण सपनों का .... यथार्थ को कहती हुई रचना
ReplyDeleteइनमें और उनमें ये फर्क सदियों से चला आ रहा है...जाने कभी मिटेगा या नहीं..
ReplyDeleteगहन भाव ..
सस्नेह
अनु
'इनके' सपनों की दुनिया में
ReplyDelete'उनकी' बे परवाह मस्ती है
'ये' दर्द को पीते हैं
और 'उनकी' आह निकलती है
वाह ! क्या बात है !!
काश ! किसी बच्चे का बचपन मजूरी करते न बीते..
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (19-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
और कहने को सब बच्चे हैं......जिनके हिस्से में भी एक बचपन है ....
ReplyDeleteसपने 'ये' भी देखते हैं
ReplyDeleteसपने 'वो' भी देखते हैं
बस 'ये' ज़मीं पे चलते हैं
और 'वो' आसमां में उड़ते हैं। badi achchi tulna ki hai......
सपने ये भी देखते हैं सपने वो भी देखते हैं पर फर्क इतना है की वहाँ समृद्धि का सुनहरा संसार लहलहाता है और यहाँ अभावों और विवशता हर दम मुह बाये खड़ी रहती है...........बेहद भाव पूर्णभिव्यक्ति शुभ कामनाएं यशवंत जी !!!
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