काश!
इन्सान भी होता
वक़्त की तरह
तो कहीं से भी हो कर
गुज़र सकता ....
खुद ही मिल जाती
अमरता ....
न रुकता कहीं
न कभी थकता ....
काश!
इन्सान भी
वक़्त की तरह होता।
©यशवन्त माथुर©
इन्सान भी होता
वक़्त की तरह
तो कहीं से भी हो कर
गुज़र सकता ....
खुद ही मिल जाती
अमरता ....
न रुकता कहीं
न कभी थकता ....
काश!
इन्सान भी
वक़्त की तरह होता।
©यशवन्त माथुर©
बहुत सुन्दर ...काश इंसान भी वक्त की तरह होता ..
ReplyDeleteकाश!
ReplyDeleteकाश इन्सान भी वक्त की तरह होता,बहुत ही प्रभावी रचना।
ReplyDeleteसोच तो गहरी है ....:)
ReplyDeleteगहरी सोच की प्रभावी अभिव्यक्ति,,,,
ReplyDeleterecent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
सच में ऐसा होता तो क्या होता...?गहन सोच..
ReplyDeleteइंसान तो वह शै है जो वक्त के भी पार जा सकती है..खुद को जाने तो सही..
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteन रुकता कहीं
ReplyDeleteन कभी थकता ....
काश!
इन्सान भी
वक़्त की तरह होता।
तब वो इन्सान कहाँ होता
आज तो इंसान वक्त से भी तेज़ बदल जाता है !!!
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