पल पल बदलते
मौसम के इन रंगों में
कभी धूप में
कभी छांव में
नहीं बदलता है
उसका मलिन
काला चेहरा
हाड़ कंपाने वाली ठंड ने
झुलसाने वाली धूप और लू ने
बेशर्म अंधियों -तूफानों ने
नामर्द वक़्त की
ललचाई नज़रों ने
ठोक -पीट कर
उस 'फुटपाथिया' को
सिखा दिया है जीना
कभी
मज़दूरनी बन कर
तो कभी
भिखारिन बन कर ।
©यशवन्त माथुर©
मौसम के इन रंगों में
कभी धूप में
कभी छांव में
नहीं बदलता है
उसका मलिन
काला चेहरा
हाड़ कंपाने वाली ठंड ने
झुलसाने वाली धूप और लू ने
बेशर्म अंधियों -तूफानों ने
नामर्द वक़्त की
ललचाई नज़रों ने
ठोक -पीट कर
उस 'फुटपाथिया' को
सिखा दिया है जीना
कभी
मज़दूरनी बन कर
तो कभी
भिखारिन बन कर ।
©यशवन्त माथुर©
सार्थक पंक्तियाँ
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteवरिष्ठ गणतन्त्रदिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ और नेता जी सुभाष को नमन!
कदम कदम पर मिलते जीवन के अनुभवों से बड़ा गुरु और कोई नहीं ......सार्थक रचना ...!
ReplyDeleteजीना तो है ही...हर हाल में...
ReplyDeleteमार्मिक रचना.
सस्नेह
अनु
उफ़ ! कितनी विषमता है समाज में..
ReplyDeleteवक्त के थपेड़े बहुत कुछ सिखला जाते हैं ..बहुत बढ़िया भावुकता भरी प्रस्तुति ..
ReplyDeleteवक़्त और हालात ..... :(
ReplyDelete~God Bless!!!
बहुत खूब! लजवाब! आपकी अभिव्यक्ति बहुत सशक्त है।
ReplyDeleteबहुत खूब! लजवाब! आपकी अभिव्यक्ति बहुत सशक्त है।
ReplyDeleteसुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति करें अभिनन्दन आगे बढ़कर जब वह समक्ष उपस्थित हो .
ReplyDeleteआप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 24-01-2013 को यहाँ भी है
....
बंद करके मैंने जुगनुओं को .... वो सीख चुकी है जीना ..... आज की हलचल में..... संगीता स्वरूप
.. ....संगीता स्वरूप
. .
नामर्द वक़्त की
ReplyDeleteललचाई नज़रों ने
ठोक -पीट कर
उस 'फुटपाथिया' को
सिखा दिया है जीना
कभी
मज़दूरनी बन कर
तो कभी
भिखारिन बन कर ।
अद्भुत निःशब्द करती भावनाए
ललचाई नज़रों ने
ReplyDeleteठोक -पीट कर
उस 'फुटपाथिया' को
सिखा दिया है जीना
कभी
मज़दूरनी बन कर
तो कभी
भिखारिन बन कर ।
sunder bhavpurn abhivyakti
rachana
ओह! मार्मिक!
ReplyDeleteकष्टदायक पर सत्य है ... शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteजीना ही नहीं सीखा बल्कि विषम परिस्थिति में भी बाधा से लड़ना भी सीखा।
ReplyDeleteकटु सत्य को कहती मार्मिक रचना
ReplyDeleteजीना तो है ही..चाहे कितनी भी विषम परिस्थिति हो...मार्मिक रचना
ReplyDeleteसशक्त और प्रभावशाली रचना.....
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