सवेरा कब का हो गया
फिर भी
कोहरे के आँचल तले
अब तक
धूप सो रही है
ले रही है
मंद हवा के खर्राटे
बता रही है
पेड़ों की हिलती पत्तियों को
कि आलसी
सिर्फ
इंसान ही नहीं होता।
©यशवन्त माथुर©
फिर भी
कोहरे के आँचल तले
अब तक
धूप सो रही है
ले रही है
मंद हवा के खर्राटे
बता रही है
पेड़ों की हिलती पत्तियों को
कि आलसी
सिर्फ
इंसान ही नहीं होता।
©यशवन्त माथुर©
की आलसी सिर्फ इंसान ही नहीं होता ...
ReplyDeleteमौसम के मिजाज को नवीन बिम्ब मिला !
बहुत खूब !
बिलकुल सही आंकलन यशवंत भाई.
ReplyDeleteबिल्कुल सही लिखा है यशवंत...इंसान ही नहीं प्रकृति भी अलसाई सी रहती है इतनी सर्दी में
ReplyDeleteप्रभावी लेखन,
ReplyDeleteजारी रहें,
बधाई !!!
आर्यावर्त परिवार
वाह ! कोई तो मिला अपना जोड़ीदार..
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियां .....
ReplyDeletezzzzzzzzzzzzz (me snoring --- says summer) :P :)
ReplyDeleteकि आलसी
ReplyDeleteसिर्फ
इंसान ही नहीं होता।
बिलकुल सही !! पेड़-पोधों को देख कर ऐसा ही महसूस होता है !!
on mail by-indira mukhopadhyay
ReplyDeleteBahut sundar, par kuchh udas suron ke saath.
मंद हवा के खर्राटे
ReplyDeleteबता रही है
पेड़ों की हिलती पत्तियों को
कि आलसी
सिर्फ
इंसान ही नहीं होता।
गजब का समीर का मानवीकरण ...बहुत खूब
beautifully written....lovely!
ReplyDeleteon e mail by--indira mukhopadhyay
ReplyDeleteवह क्या बात है।
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 09/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteएक के बाद एक आपकी कविताएँ पढ़ीं. बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह ......बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteखूबसूरत बिम्ब ...
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ .....
ReplyDelete:-)