03 January 2013

क्षणिका .....

सवेरा कब का हो गया
फिर भी
कोहरे के आँचल तले
अब तक
धूप सो रही है
ले रही है 
मंद हवा के खर्राटे
बता रही है
पेड़ों की हिलती पत्तियों को 
कि आलसी
सिर्फ
इंसान ही नहीं होता। 

 ©यशवन्त माथुर©

17 comments:

  1. की आलसी सिर्फ इंसान ही नहीं होता ...
    मौसम के मिजाज को नवीन बिम्ब मिला !
    बहुत खूब !

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  2. बिलकुल सही आंकलन यशवंत भाई.

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  3. बिल्कुल सही लिखा है यशवंत...इंसान ही नहीं प्रकृति भी अलसाई सी रहती है इतनी सर्दी में

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  4. वाह ! कोई तो मिला अपना जोड़ीदार..

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  5. सुन्दर पंक्तियां .....

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  6. zzzzzzzzzzzzz (me snoring --- says summer) :P :)

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  7. कि आलसी
    सिर्फ
    इंसान ही नहीं होता।

    बिलकुल सही !! पेड़-पोधों को देख कर ऐसा ही महसूस होता है !!

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  8. on mail by-indira mukhopadhyay

    Bahut sundar, par kuchh udas suron ke saath.

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  9. मंद हवा के खर्राटे
    बता रही है
    पेड़ों की हिलती पत्तियों को
    कि आलसी
    सिर्फ
    इंसान ही नहीं होता।

    गजब का समीर का मानवीकरण ...बहुत खूब

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  10. beautifully written....lovely!

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  11. on e mail by--indira mukhopadhyay

    वह क्या बात है।

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  12. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 09/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  13. एक के बाद एक आपकी कविताएँ पढ़ीं. बहुत सुन्दर

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  14. सुन्दर पंक्तियाँ .....
    :-)

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