सोच रहा हूँ
ख्वाबों के दल दल से
बाहर आ कर
काल्पनिक दुनिया के
पार आ कर
चुभीली सच्चाई से
हाथ मिला कर
अब कर ही लूँ दोस्ती
वक़्त की
उठती गिरती
लहरों से ।
©यशवन्त माथुर©
ख्वाबों के दल दल से
बाहर आ कर
काल्पनिक दुनिया के
पार आ कर
चुभीली सच्चाई से
हाथ मिला कर
अब कर ही लूँ दोस्ती
वक़्त की
उठती गिरती
लहरों से ।
©यशवन्त माथुर©
सच्चाई का तो सामना करना ही होगा..मन की दुविधा दर्शाती सुन्दर भाव.... नव वर्ष की हार्दिक बधाई.शुभकामनाएं यशवन्त..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeleteवक़्त को अपना दोस्त बना ही ले.. सुंदर नववर्ष मगल्मय हो
ReplyDeleteबढ़िया | सच का सामना जितना जल्दी हो जाए बढ़िया है |
ReplyDeleteबहुत जरुरी है जीवन की सच्चाइयों से हाथ मिलाकर चलना... सकारात्मक सोच लिए बहुत सुन्दर रचना.... शुभकामनायें
ReplyDeleteबिल्कुल .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति शुभकामना देती ”शालिनी”मंगलकारी हो जन जन को .-2013
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा ....!! लेकिन आप से संभव है ...... ?? शुभकामनायें !!
ReplyDeleteसुन्दर ख़याल.....
ReplyDeleteसस्नेह
अनु
चुभती भी हैं, और आप दोस्ती भी करना चाहते हैं! बड़े हिम्मत की बात है।
ReplyDeleteशुभकामनाएँ आपको भी! :)
सादर
मधुरेश
यशवंत माथुर जी इतना आसान नहीं चलते चलते दर्द से दोस्ती करना .....
ReplyDeleteवाह ..सटीक भाव के साथ लाजवाब क्षणिका ..
ReplyDeleteयहाँ पर आपका इंतजार रहेगा शहरे-हवस
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ReplyDeleteindira mukhopadhyay
Waqt ka takaza bhi hai, bahut khub Yashwantji. Naye saal ki shumkamnayen aur dersa ashirwad.