31 January 2013

क्षणिका

जब कभी देखता हूँ
शब्दों के आईने में
अपना अक्स ...
तो बच नहीं पाता हूँ
खुद के बिखरे होने के
एहसास से।
 
©यशवन्त माथुर©

12 comments:

  1. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 02/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  2. बहुत बढ़िया....

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  3. शब्दों के आईने में जो दिखेगा वह शब्द शब्द ही तो होगा..निशब्द के आईने में ही देखना होगा..

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  4. उस बिखराव में भी एकाग्रता है ....

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  5. शब्दों के आईने में अक्स... क्या खूब बिम्ब हैं !

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  6. हे भगवान आप लोग क्या क्या लिख देते हो मेरे जैसे लोग तो समझते ही रह जाते हैं :)

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  7. gehri soch liye kshnika.

    shubhkamnayen

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  8. ऐसा ही होता है..
    सुन्दर क्षणिका
    :-)

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