08 January 2013

क्षणिका

खामोशी में
घड़ी की
डरावनी टिक टिक 
न जाने कैसा
आनंद पाती है
कभी न थमने में।

 ©यशवन्त माथुर©

4 comments:

  1. बहुत अच्छे बंधू | बढ़िया अभिव्यक्ति |

    Tamasha-e-zindagi

    ReplyDelete
  2. अंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ......

    ReplyDelete
  3. बहुत पहले मेरे सोने के कमरे में थी ऐसी घड़ी ..........
    कई बार मन किया होगा ..........
    उतारूँ और चुर-चुर कर दूँ .....
    शुभकामनायें !!

    ReplyDelete
  4. मेल पर प्राप्त टिप्पणी -
    indira mukhopadhyay


    Very correct expression Yashwantji

    ReplyDelete