13 February 2013

अब मोमबत्तियाँ नहीं जलेंगी .....

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अब मोमबत्तियाँ नहीं जलेंगी
न ही कुछ लिखा जाएगा
न लोग इकट्ठे होंगे
न लगेंगे मुर्दाबादी नारे
क्योंकि जिंदाबादों की यह बस्ती

आबाद है
अवसरवादी मुखौटों से!


©यशवन्त माथुर©

(इलाहाबाद रेलवे स्टेशन की घटना पर मेरी यह प्रतिक्रिया संजोग अंकल के फेसबुक स्टेटस पर टिप्पणी में है।)  

17 comments:

  1. सार्थक चिंतन के साथ एक सशक्त प्रस्तुति ! शुभकामनाएं यशवंत जी !

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  2. बिलकुल उचित प्रतिक्रिया है आपकी!

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  3. बिल्कुल सही कहा नहीं जलेंगी मोमबतियाँ

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  4. क्योंकि जिंदाबादों की यह बस्ती
    आबाद है
    अवसरवादी मुखौटों से!

    खूब कही.... सटीक

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  5. ~उस शोर में भी हम सब शामिल थे...
    इस खामोशी में भी हम सब शामिल हैं....~
    'कुंभ मेले' में भी दुर्घटना घटी... और ये कोई पहली बार नहीं हुआ ! दुख तो यही है... कि ये सब दुर्घटनाएँ यहाँ-वहाँ घटती रहतीं हैं मगर इसके लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाया जाता, अच्छा इंतज़ाम नहीं किया जाता जिससे अगली बार ऐसा कुछ दुखद ना हो... :(
    ~God Bless!!!

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  6. सही कहा नहीं जलेंगी मोमबतियाँ

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  7. sach ,par n jane kab nijat milegi in awasarwadi mukhoton se,

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  8. आपकी यह प्रस्तुति पढ़कर ...प्रेमचंदजी की एक कहाँ याद आ गयी .."ब्रह्म का स्वांग ".....

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