कहीं ऐसा तो नहीं
ग्लोबल वार्मिंग की वार्निंग को
धता बताते हुए
इंसानी संगत का
खुद पर असर जताते हुए
हो दरअसल यह सावन ही
और हम समझ बैठे हों बसंत
गली की कीचड़ में
डुबकी लगाते हुए
शहर में होते हुए
और गाँव का
धोखा खाते हुए।
©यशवन्त माथुर©
ग्लोबल वार्मिंग की वार्निंग को
धता बताते हुए
इंसानी संगत का
खुद पर असर जताते हुए
हो दरअसल यह सावन ही
और हम समझ बैठे हों बसंत
गली की कीचड़ में
डुबकी लगाते हुए
शहर में होते हुए
और गाँव का
धोखा खाते हुए।
©यशवन्त माथुर©
मौसम भी ज़माने के साथ रंग बदलने लगा है शायद.....
ReplyDelete:-)
अनु
क्या बात कह दी यशवंत भाई | सोचने योग्य विचार है यह तो | आभार
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteये मौसम कुछ भी सोचने पर मजबूर कर देता है :):)
ReplyDeleteडरिये नहीं जो होगा सबके साथ एक जैसा होगा .शुभकामनाएं
ReplyDeletelatest postअनुभूति : प्रेम,विरह,ईर्षा
atest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
बहुत खूब......वाकई ...ऐसी बारिश तो बसंत में कभी नहीं हुई ....:)
ReplyDeleteसटीक रचना
ReplyDeleteमौसम के रंग....
ReplyDeleteज़माने के संग.....!!
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 20/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत खूब....
ReplyDelete