उन्हें कुछ नहीं पता
क्या धर्म
क्या जात की ऊंच नीच
क्या गोरा क्या काला
अमीर या गरीब
उन्हें मतलब नहीं
भाषा या देश से
संस्कृति और परिवेश से
न राग से न द्वेष से
उनका मन सिर्फ
उनका ही मन है
खुद में ही मस्त है
खुद मे ही मगन है
उन्हें लोटना है ज़मीन पर
तुतलाना है , ठुमकना है
अपनी ही दुनिया मे जीना
बच्चों का बचपना है
कभी था यह सब
खुद की हकीकत
अब यह सब एक सपना है !
©यशवन्त माथुर©
क्या धर्म
क्या जात की ऊंच नीच
क्या गोरा क्या काला
अमीर या गरीब
उन्हें मतलब नहीं
भाषा या देश से
संस्कृति और परिवेश से
न राग से न द्वेष से
उनका मन सिर्फ
उनका ही मन है
खुद में ही मस्त है
खुद मे ही मगन है
उन्हें लोटना है ज़मीन पर
तुतलाना है , ठुमकना है
अपनी ही दुनिया मे जीना
बच्चों का बचपना है
कभी था यह सब
खुद की हकीकत
अब यह सब एक सपना है !
©यशवन्त माथुर©
बिल्कुल....अब यह सपना ही है
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ReplyDeleteआभार बहुत खूब कहा अपने
आपको बहुत बहुत बधाई
मेरी नई रचना
फरियाद
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
दिनेश पारीक
ReplyDeleteआभार बहुत खूब कहा अपने
आपको बहुत बहुत बधाई
मेरी नई रचना
फरियाद
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
दिनेश पारीक
बच्चों के निर्मल भावों की सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteनिश्छल बचपन ही श्रेष्ठ है |बढ़िया
ReplyDeleteउस निश्चलता का एक अंश भी अगर हमें समां जाये ....तो शायद जीने का ढंग बदल जाये ....:)
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
ReplyDeleteज़िन्दगी के सबसे अच्छे दिन होते हैं वो.
ReplyDeleteबच्चों सा निर्मल बन पाना .....एक सपना सा ...
ReplyDeleteसुंदर रचना यशवंत ...!!
सपना ही है
ReplyDeleteसुंदर रचना, बचपन हर गम से बेगाना होता है...
ReplyDeletesunder sapna
ReplyDeleteगुज़ारिश : !!..'बचपन सुरक्षा' एवं 'नारी उत्थान' ..!!
sach me...bachpan ab 1 sapna hi h...jo kabhi haqikat nahi ban sakta :(
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