सोच रहा हूँ-
वक़्त -बेवक्त दिखने वाली
धूप छांव की
इस मृग मरीचिका में
सुस्ताती हुई
जीवन कस्तूरी
आखिर क्या पाती है
यूं पहेलियाँ बुझाने से ?
©यशवन्त माथुर©
वक़्त -बेवक्त दिखने वाली
धूप छांव की
इस मृग मरीचिका में
सुस्ताती हुई
जीवन कस्तूरी
आखिर क्या पाती है
यूं पहेलियाँ बुझाने से ?
©यशवन्त माथुर©
nothing at all..
ReplyDeleteit just creates more confusion :P
संघर्ष करने का जज़्बा पाती है ...
ReplyDeleteक्या खूब कहा आपने वहा वहा क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
ReplyDeleteमेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
उत्कृष्ट प्रस्तुति |
ReplyDeleteआभार आदरणीय ||
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteयही रहस्य तो जीवन का सौंदर्य है..
ReplyDeleteजीवन में कुछ नया करने का रास्ता,,,,
ReplyDeleteRecent Post दिन हौले-हौले ढलता है,
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत उम्दा प्रस्तुति ...
ReplyDeleteजीवन जीने का हौसला पाती है... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.. शुभकामनायें
ReplyDeletesundar Rachna...
ReplyDeleteहोंसला मिलता है जीवन में ...
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