कभी कभी
कुछ बातें
रह जाती हैं
अनकही
अनसुनी
कभी चाहे
कभी अनचाहे
कभी धोखे में
या कभी जान कर
फिर भी
उन बातों को
सुन
समझ लिया जाता है
गूंगी जीभ के स्वाद
और
अंधे को दिखाई देती
हर तस्वीर की तरह।
©यशवन्त माथुर©
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सही फ्र्मुआ माथुर जी जीवन में बहुत कुछ अनकही बाते रह जाती है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteवाह .... सटीक लिखा है ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeletelatest postअनुभूति : कुम्भ मेला
recent postमेरे विचार मेरी अनुभूति: पिंजड़े की पंछी
सार्थक रचना
ReplyDeleteसाभार !