अनकही बातें
खामोश सी बातें
कभी कभी उतावली होती हैं
भीतर से
बाहर आने को
दबी हुई कह जाने को
पर अनकही
अनकही ही रह जाती है
कभी साँसों के उखड़ने की
मजबूरी में
और कभी
इस उम्मीद में
कि
समझने वाले ने
झांक ही लिया होगा
मन के भीतर।
©यशवन्त माथुर©
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अक्सर यह गलत फहमी ..दुखों का भी बायस बन जाती है ...है न
ReplyDeleteउम्मीद में ज़्यादातर रह जाती हैं अनकही बातें ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वहा वहा क्या बात है अद्भुत, सार्थक प्रस्तुरी
ReplyDeleteमेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
बहुत सुंदर
ReplyDeleteयशवंत भाई बहुत सुन्दर :) | बधाई
ReplyDeleteइस उम्मीद में
ReplyDeleteकिसमझने वाले ने
झांक ही लिया होगा
मन के भीतर। इसी से तो गलतफहमी आ जाती है..
भावपूर्ण रचना...
इसी एहसास के चलते हम समय पर कुछ कह नहीं पाते
ReplyDeletesahi kaha apne....ankahi ankahi hi reh jati hai....nahi samajh pata koi..
ReplyDeleteठीक कहा है ... इसलिए कह देना चाहिए जो मन में है ...
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