23 February 2013

चलना ही है

कभी
एक सीधी राह दिखती है 
जो मंज़िल की ओर जाती है
सामने मंज़िल भी है


राही
चल रहा है
चलता ही जा रहा है
और उसको
सच भी समझ आ रहा है

जिसे वो समझ रहा था
खुली और उजली राह
वो मृगमरीचिका है
जिस पर हैं
तीखे मोड़
यहाँ वहाँ
गहरे गड्ढे

इस पर चलना
आसान नहीं
लेकिन जब
शुरू कर दिया चलना
जब बढ़ा दिया कदम

तो चाहे
अनचाहे
गुजरना ही है
इस सन्नाटे में
इस निर्जन में
चक्रवातों से 
पार पाना ही है

चलना ही है
थाम कर
हमराही बनी
उम्मीद का हाथ।

©यशवन्त माथुर©

10 comments:

  1. हमराही बनी
    उम्मीद का हाथ।

    Bahut Sunder.....

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  2. मंजिल तक पहुँचने के लिए चलना तो पड़ेगा -चलते जाइये
    latest postमेरे विचार मेरी अनुभूति: मेरी और उनकी बातें

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  3. बिलकुल यशवंत भाई, जब अहद कर लिया चलने को तो मंजिल से पहले रुकना क्या.

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति बधाई ...

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  5. क्या बात हुज़ूर | बहुत अच्छे | बधाई

    Tamasha-E-Zindagi
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  6. चलना ही है
    थाम कर
    हमराही बनी
    उम्मीद का हाथ।
    सार्थक अभिव्यक्ति !!

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  7. सुन्दर प्रस्तुति

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  8. चलना ही जिन्दगी है..

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  9. यशवंत जी सुंदर प्रस्तुति

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  10. bahut sunder..bas ek ummeed ke sahaare hi to chlte hain ham sabhi ...

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