कभी
एक सीधी राह दिखती है
जो मंज़िल की ओर जाती है
सामने मंज़िल भी है
राही
चल रहा है
चलता ही जा रहा है
और उसको
सच भी समझ आ रहा है
जिसे वो समझ रहा था
खुली और उजली राह
वो मृगमरीचिका है
जिस पर हैं
तीखे मोड़
यहाँ वहाँ
गहरे गड्ढे
इस पर चलना
आसान नहीं
लेकिन जब
शुरू कर दिया चलना
जब बढ़ा दिया कदम
तो चाहे
अनचाहे
गुजरना ही है
इस सन्नाटे में
इस निर्जन में
चक्रवातों से
पार पाना ही है
चलना ही है
थाम कर
हमराही बनी
उम्मीद का हाथ।
©यशवन्त माथुर©
हमराही बनी
ReplyDeleteउम्मीद का हाथ।
Bahut Sunder.....
मंजिल तक पहुँचने के लिए चलना तो पड़ेगा -चलते जाइये
ReplyDeletelatest postमेरे विचार मेरी अनुभूति: मेरी और उनकी बातें
बिलकुल यशवंत भाई, जब अहद कर लिया चलने को तो मंजिल से पहले रुकना क्या.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति बधाई ...
ReplyDeleteक्या बात हुज़ूर | बहुत अच्छे | बधाई
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
चलना ही है
ReplyDeleteथाम कर
हमराही बनी
उम्मीद का हाथ।
सार्थक अभिव्यक्ति !!
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteचलना ही जिन्दगी है..
ReplyDeleteयशवंत जी सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeletebahut sunder..bas ek ummeed ke sahaare hi to chlte hain ham sabhi ...
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