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24 February 2013

क्षणिका

कुछ नहीं में
कुछ ढूँढता हुआ 
पा रहा हूँ खुद को
आईने के सामने :)


©यशवन्त माथुर©

5 comments:

  1. :)) अच्छा है! कभी-कभी इस तरह भी खुद से मुलाक़ात हो जाती है...
    ~God Bless!!!

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  2. सही कहा. खुद को भी खोजना पड़ता है

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  3. कुछ नहीं में बहुत कुछ पाया है..
    क्यूंकि खुद को पाया है...

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  4. बेहद ज़रूरी है आत्मविश्लेषण....

    सस्नेह
    अनु

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  5. हर कोई यहाँ बस अपनी ही तलाश में ..यूँ आइनों से टकराता फिरता है!

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