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26 February 2013

अनकही बातें

बसंत की
इस खिली धूप की तरह 
बगीचों मे खिले फूलों की तरह
खुली और मंद हवा में
झूमते हुए 
बाहर की दुनिया देखने को बेताब 
मन के भीतर की
अनकही बातें
शैतान बच्चे की तरह
करने लगी हैं जिद्द
शब्दों और अक्षरों के
साँचे में ढल कर
कागज पर उतर जाने को

मेरी पेशानी पर
पड़ रहे हैं बल
दुविधा में
कहाँ से लाऊं
अनगिनत साँचे
और कैसे ढालूँ
बातों को
उनके मनचाहे आकार में
न मेरे पास चाक है
न ही कुम्हार हूँ

बस यूं ही
करता रहता हूँ कोशिश
गढ़ता रहता हूँ  
टेढ़े-मेढ़े
बेडौल आकार
क्योंकि मेरे पास
कला नहीं
रस,छंद और अलंकार की।

©यशवन्त माथुर©

12 comments:

  1. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 27/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  2. सार्थक प्रस्तुती

    मेरी नई रचना

    ये कैसी मोहब्बत है

    खुशबू

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  3. बहुत सुन्दर ....

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  4. बहुत सुन्दर यशवंत भाई | बधाई |

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  5. प्राकृति से बड़ा कलाकार तो कोई नहीं ...

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  6. लाजबाब बेहतरीन रचना,,,,यशवंत जी बधाई ,,

    Recent Post: कुछ तरस खाइये

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  7. मन अपने अनुसार शब्दों को ढाल ही देता है और बन जाती हैरचनाये, दिल की दिल तक....

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  8. मन अपने अनुसार शब्दों को ढाल ही देता है और बन जाती हैरचनाये, दिल की दिल तक....

    ReplyDelete
  9. बहुत खूब जनाब

    आज की मेरी नई रचना जो आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है
    ये कैसी मोहब्बत है

    खुशबू

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  10. sunder bhaav liye rachna.
    mera bhi yahi haal--


    बस यूं ही
    करता रहता हूँ कोशिश
    गढ़ता रहता हूँ
    टेढ़े-मेढ़े
    बेडौल आकार
    क्योंकि मेरे पास
    कला नहीं
    रस,छंद और अलंकार की।

    shubhkamnayen

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