ख्वाबों से निकल कर
हकीकत की ज़मीं पे
देखता हूँ जिंदगी
तो दर्द होता है।
हकीकत की ज़मीं पे
जब सोता हूँ नींद में
देखता हूँ ख्वाब
तो सुकून होता है।
दिन को होती है भीड़
और रातों को तन्हाई
सोचता हूँ अक्सर
कि ऐसा क्यूँ होता है ?
©यशवन्त माथुर©
yahi ek sawal jiska kabhi jawab nhi milta.... behtreen...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
ReplyDeleteक्या बात है | बधाई
ReplyDeleteक्या बात है | बधाई
ReplyDeleteमुझे लगता है ऐसा इसलिए है कि.. जिंदगी एक ख्वाब है..
ReplyDeleteहक़ीक़त की खुरदुरी ज़मीन पर ख्वाबों का मखमली सिरहाना... सुक़ून ही देगा...
ReplyDelete~God Bless!!!
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteखाबों की दुनिया बहुत सुन्दर होती है
ReplyDeleteऔर हकीकत उसके विपरीत
सार्थक ,सुन्दर रचना...
सुन्दर ख़याल यशवंत भाई.
ReplyDeletesunder, sochpurna abhivyakti
ReplyDeleteshubhkamnayen
एक बेहतरीन रचना
ReplyDeleteयही तो हकीक़त है ख्वाब और हकीक़त में ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव !!!
ReplyDeleteहकीकत
ReplyDelete