27 February 2013

ऐसा क्यूँ होता है ?

ख्वाबों से निकल कर
हकीकत की ज़मीं पे
देखता हूँ जिंदगी
तो दर्द होता है।

हकीकत की ज़मीं पे
जब सोता हूँ नींद में
देखता हूँ ख्वाब
तो सुकून होता है। 

दिन को होती है भीड़
और रातों को तन्हाई
सोचता हूँ अक्सर
कि  ऐसा क्यूँ होता है ?


©यशवन्त माथुर©

14 comments:

  1. yahi ek sawal jiska kabhi jawab nhi milta.... behtreen...

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .

    ReplyDelete
  3. क्या बात है | बधाई

    ReplyDelete
  4. क्या बात है | बधाई

    ReplyDelete
  5. मुझे लगता है ऐसा इसलिए है कि.. जिंदगी एक ख्वाब है..

    ReplyDelete
  6. हक़ीक़त की खुरदुरी ज़मीन पर ख्वाबों का मखमली सिरहाना... सुक़ून ही देगा...
    ~God Bless!!!

    ReplyDelete
  7. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...

    ReplyDelete
  8. खाबों की दुनिया बहुत सुन्दर होती है
    और हकीकत उसके विपरीत
    सार्थक ,सुन्दर रचना...

    ReplyDelete
  9. सुन्दर ख़याल यशवंत भाई.

    ReplyDelete
  10. sunder, sochpurna abhivyakti

    shubhkamnayen

    ReplyDelete
  11. यही तो हकीक़त है ख्वाब और हकीक़त में ....

    ReplyDelete
  12. बहुत सुन्दर भाव !!!

    ReplyDelete