इन राहों पर- चौराहों पर
जब भी खुद को पाता हूँ
शोर के संगीत सुरों में
कुछ यूं ही गुनगुनाता हूँ
चाहा तो लिखना बहुत है
चाहा तो कहना बहुत है
बीच राह पर चलते चलते
गिरना कभी संभलना बहुत है
लिखने को कलम तलाश कर
कहने को ज़बान तराश कर
मन की किताब के कोरे पन्ने पर
लिखता कुछ मिटाता हूँ
कहता कुछ समझाता हूँ
बस यूं ही आता जाता हूँ
इन राहों पर- चौराहों पर
जब भी खुद को पाता हूँ
©यशवन्त माथुर©
जब भी खुद को पाता हूँ
शोर के संगीत सुरों में
कुछ यूं ही गुनगुनाता हूँ
चाहा तो लिखना बहुत है
चाहा तो कहना बहुत है
बीच राह पर चलते चलते
गिरना कभी संभलना बहुत है
लिखने को कलम तलाश कर
कहने को ज़बान तराश कर
मन की किताब के कोरे पन्ने पर
लिखता कुछ मिटाता हूँ
कहता कुछ समझाता हूँ
बस यूं ही आता जाता हूँ
इन राहों पर- चौराहों पर
जब भी खुद को पाता हूँ
©यशवन्त माथुर©
सुंदर भाव यशवंत ....
ReplyDeleteशुभकामनायें ....
bahut sundar prsututi
ReplyDeleteस्वयं से संवाद करती सी रचना .... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया है भाई-
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है यशवंत...
ReplyDeleteसस्नेह
अनु
बीच राह पर चलते चलते
ReplyDeleteगिरना कभी संभलना बहुत है
बहुत बढ़िया रचना... बधाई
इस शोर में कुछ भी लिखना कहाँ मुमकिन है
ReplyDeleteशुभ प्रभात
ReplyDeleteशानदार रचना
इसका लिंक ट्विटर पर भी
@4yashoda
बहुत ही सुन्दर सार्थक प्रस्तुती।
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