03 February 2013

कैसे कह दूँ उन बातों को ?

अक्स बन कर अक्षर अक्षर
कहता मन के जज़्बातों को
फिर भी जो अब बची रह गईं
कैसे कह दूँ उन बातों को ?

बातों का आधार बड़ा है
बातों पर संसार खड़ा है
कोई होता विचलित पल में
कोई अंगद पाँव अड़ा है ।

बिखरी बिखरी बातें अक्सर
बनती  भाषा,लिपि या अक्षर 
और जो कुछ भी बन न सकीं तो
कैसे खोलूँ मन के पाटों को

कैसे कह दूँ उन बातों को ?
 

©यशवन्त माथुर©

9 comments:

  1. कुछ बातें मन के अन्दर ही अच्छी. सुन्दर रचना यशवंत भाई.

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  2. अक्स बन कर अक्षर अक्षर
    कहता मन के जज़्बातों को
    फिर भी जो अब बची रह गईं
    कैसे कह दूँ उन बातों को ?....बहुत सुन्दर भाव ..सुन्दर रचना..

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  3. वाह! बहुत सुन्दर...

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  4. सच है हर बात कही नहीं जाती ...

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  5. "कैसे खोलूँ मन के पाटों को"
    सच ! ये घुटन जान पर बन आती है। सुंदर कविता के लिए बधाई !

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  6. जो शेष है जो कहने में नहीं आया वही तो महत्वपूर्ण है..आभार!

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  7. बेहतर रचना- बेहतर प्रस्तुति.
    डा. रघुनाथ मिश्र्

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