अक्स बन कर अक्षर अक्षर
कहता मन के जज़्बातों को
फिर भी जो अब बची रह गईं
कैसे कह दूँ उन बातों को ?
बातों का आधार बड़ा है
बातों पर संसार खड़ा है
कोई होता विचलित पल में
कोई अंगद पाँव अड़ा है ।
बिखरी बिखरी बातें अक्सर
बनती भाषा,लिपि या अक्षर
और जो कुछ भी बन न सकीं तो
कैसे खोलूँ मन के पाटों को
कैसे कह दूँ उन बातों को ?
©यशवन्त माथुर©
कहता मन के जज़्बातों को
फिर भी जो अब बची रह गईं
कैसे कह दूँ उन बातों को ?
बातों का आधार बड़ा है
बातों पर संसार खड़ा है
कोई होता विचलित पल में
कोई अंगद पाँव अड़ा है ।
बिखरी बिखरी बातें अक्सर
बनती भाषा,लिपि या अक्षर
और जो कुछ भी बन न सकीं तो
कैसे खोलूँ मन के पाटों को
कैसे कह दूँ उन बातों को ?
©यशवन्त माथुर©
:)
ReplyDeleteकुछ बातें मन के अन्दर ही अच्छी. सुन्दर रचना यशवंत भाई.
ReplyDeleteअक्स बन कर अक्षर अक्षर
ReplyDeleteकहता मन के जज़्बातों को
फिर भी जो अब बची रह गईं
कैसे कह दूँ उन बातों को ?....बहुत सुन्दर भाव ..सुन्दर रचना..
वाह! बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसुन्दर रचना......
ReplyDeleteसच है हर बात कही नहीं जाती ...
ReplyDelete"कैसे खोलूँ मन के पाटों को"
ReplyDeleteसच ! ये घुटन जान पर बन आती है। सुंदर कविता के लिए बधाई !
जो शेष है जो कहने में नहीं आया वही तो महत्वपूर्ण है..आभार!
ReplyDeleteबेहतर रचना- बेहतर प्रस्तुति.
ReplyDeleteडा. रघुनाथ मिश्र्