11 March 2013

सोच......(कुछ विचार)

 (1)

सोच
जितनी असीमित
और अनंत होती है
कभी कभी
लगा देती है
उतने ही अनंत
असीमित प्रश्न चिह्न
खुद के माथे पर

(2)

सोच
कभी
होती है
मिट्टी के मोल
और कभी
हीरे से भी महंगी
कभी तुलती है
टनों में
और कभी
रत्ती या छ्टांक में
फिर भी
बनाए रखती है
अपना अस्तित्व
बंद मुट्ठी के खुलते ही
बिखर जाती है
एक की
अनेक हो कर!

©यशवन्त माथुर©

10 comments:

  1. sahi kaha...fir bhi soch ko hum soch kar bhi dur nahi bahaga sakte.....sundar rachna..

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  2. यही है सोच की करामात

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  3. सार्थक अभिव्यक्ति !!
    शुभकामनायें !!

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  4. सच है ...सोच एक होकर भी असीमित है ....एक की होकर भी शब्दों में ढलते ही अनेकों को सोचने पर विवश कर देती है ...सुंदर ख़याल

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  5. jyada mat sochiye ... bloodpressure badh jaayega aur hath kuchh nahin aayega

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  6. सुन्दर और सत्य |

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  7. हर सोच की अपनी महत्ता है ,,,,
    बहुत सुन्दर ,,,,

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  8. सच में विचारणीय यशवंत .....

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  9. वाह ..बहुत बढ़िया ..

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  10. बहुत उम्दा प्रस्तुति आभार

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये

    आप मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे

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