आँख पर पट्टी बांधे
न्याय की मूरत
अकर्मण्यता के
बंद कमरे में
कर रही है आराम
और बाहर
सुनहरा कल (?)
बीन रहा है
टुकड़ा टुकड़ा सपनों को
कूड़े के ढेरों पर!
~यशवन्त माथुर©
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बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...!
ReplyDeleteबंद कमरे में बाहर का कुछ भी कहाँ नज़र आता है ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया संवेनशील प्रस्तुति ..
वाह बहुत सुन्दर ..सागर मेम गागर भर दिया..यशवंत..
ReplyDeleteकड़वा सच ....
ReplyDeleteसोच के मन कसैला हो जाता है .......
शुभकामनायें !!
अर्थपूर्ण क्षणिका ...
ReplyDeleteसुनहरा कल (?)
ReplyDeleteबीन रहा है
टुकड़ा टुकड़ा सपनों को
कूड़े के ढेरों पर!
बहुत मार्मिक सत्य......
waah! saral shabdon mein gehri baaat.
ReplyDeleteshubhkamnayen
अर्थपूर्ण ...चंद शब्दों में पूरी कहानी
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