15 March 2013

क्षणिका.....

आँख पर पट्टी बांधे
न्याय की मूरत
अकर्मण्यता के
बंद कमरे में
कर रही है आराम
और बाहर
सुनहरा कल (?)
बीन रहा है
टुकड़ा टुकड़ा सपनों को
कूड़े के ढेरों पर!

~यशवन्त माथुर©

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया...

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  2. बहुत सुन्दर ...!

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  3. बंद कमरे में बाहर का कुछ भी कहाँ नज़र आता है ..
    बहुत बढ़िया संवेनशील प्रस्तुति ..

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  4. वाह बहुत सुन्दर ..सागर मेम गागर भर दिया..यशवंत..

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  5. कड़वा सच ....
    सोच के मन कसैला हो जाता है .......
    शुभकामनायें !!

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  6. अर्थपूर्ण क्षणिका ...

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  7. सुनहरा कल (?)
    बीन रहा है
    टुकड़ा टुकड़ा सपनों को
    कूड़े के ढेरों पर!

    बहुत मार्मिक सत्य......

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  8. waah! saral shabdon mein gehri baaat.

    shubhkamnayen

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  9. अर्थपूर्ण ...चंद शब्दों में पूरी कहानी

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