बंद कमरे से निकल कर
बाहर की दुनिया में
जब भी जाता हूँ
एक नज़र देखता हूँ
लौट आता हूँ
नहीं मुझ में ताकत
कडवे सच से
रु ब रु होने की
नहीं मुझ को तमन्ना
खतम कहीं पे शुरू होने की
चारदीवारी के बाहर
माहौल सब एक जैसा है
कहीं कोई रोता है
कोई हँसता है
कोई दीवालिया है
कोई धन्ना सेठ है
इन्सानों का तो बस
उतना ही बड़ा पेट है
फिर भी भूख से रोता
बचपन नहीं देख पाता हूँ
बंद कमरे से निकल कर
बाहर की दुनिया में
जब भी जाता हूँ
एक नज़र देखता हूँ
लौट आता हूँ
~यशवन्त माथुर©
!!
ReplyDeleteदर्द दिख रहा है !!
अपने आप पर
गुस्सा आता है कि
कुछ ना कर पाने की
लाचारगी क्यूँ है ....
शुभकामनायें !!
उम्दा अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteRecent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
बहुत सुन्दर सम्वेदनापूर्ण रचना...शुभकामनायें!
ReplyDeleteकोई दीवालिया है
ReplyDeleteकोई धन्ना सेठ है
इन्सानों का तो बस
उतना ही बड़ा पेट है----bahut sahi bhaw
बंद कमरे से निकल कर
ReplyDeleteबाहर की दुनिया में
जब भी जाता हूँ
एक नज़र देखता हूँ
लौट आता हूँ
aaj ke mahol ke kadwe sach ko darshati ek achhi rachna.
shubhkamnayen