(विश्व गौरैया दिवस पर विशेष)
दोष मेरा ही है
हरे जंगलों को काट कर
मैंने अब बसा लिया हैं
कंक्रीट का आशियाना
गमलों मे रोप दिये हैं
बौने बोन्साई
दोष मेरा ही है
और बहाना ये भी है
कि इस महंगाई में
मैं नहीं बिखेर सकता
गेहूं और बाजरा
घर की छत पर
इतनी मेहनत से
लाइन में लग कर
लड़कर झगड़ कर
गली के उस टूटे नल से
लाता हूँ और सहेजता हूँ
अपने पीने का पानी
बोलो गौरैया रानी
मैं कैसे करूँ
तुम्हारी सेवा ?
मैं सब कुछ कर सकता हूँ
अपने लिये
पर तुम्हारे लिये .......?
मेरे पास
सैकड़ों बहाने हैं।
~यशवन्त माथुर©
उचित चिंता यशवंत भाई. गाँव गया तो मालूम हुआ की मोबाइल टावरों का भी बहुत बड़ा योगदान है इसके लुप्त होने में.
ReplyDeleteआज हम कितने स्वार्थी होगए हैं..
ReplyDeleteमैं सब कुछ कर सकता हूँ
ReplyDeleteअपने लिये
पर तुम्हारे लिये .......?
मेरे पास
सैकड़ों बहाने हैं
बहुत सुन्दर
शुभकामनायें
सचमुच दोष हम इंसानों का ही है...गहन भाव युक्त बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक प्रस्तुति."पेड़-पौधे लगाएं धरा बचाएं"
ReplyDeleteगहरा कटाक्ष लिए ..
ReplyDeleteबोलो में क्या करूं ...
मित्रों!
ReplyDeleteआज विश्व गौरय्या दिवस है!
खेतों में विष भरा हुआ है,
ज़हरीले हैं ताल-तलय्या।
दाना-दुनका खाने वाली,
कैसे बचे यहाँ गौरय्या?
क्या बात है जी ,मेरे पास सैंकड़ों बहाने हैं
ReplyDeleteगुज़ारिश : ''..होली है ..''
sundar gahare bhav , abhivyakti
ReplyDeletebahut sunder rachna, manav ki maansikta ka sahi chitran
ReplyDeleteshbuhkamnayen
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeletebahut sundar rachna ... ham kuch jada hi swarthi ban ja rahe hai.
ReplyDeleteकैसे भी हम गौरैया को बचाएं ..... सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteबोलो गौरैया रानी
ReplyDeleteमैं कैसे करूँ
तुम्हारी सेवा ?
मैं सब कुछ कर सकता हूँ
अपने लिये
पर तुम्हारे लिये ----marmik
mere blog par bhi padhey "chidiya".