मन के उदगार
जो कभी
रस छंद अलंकारों
व्याकरण के नियमों की
गठरी में बंध कर
और कभी
नियमों से परे जा कर
अपनी मौलिकता से
कराते हैं
अप्रतिम अहसास
जिन्हें कोई रचता है शब्दों में
और मुक्त हो कर
कहता है
वही कविता है।
~यशवन्त माथुर©
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बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति , बधाई
ReplyDeleteदिल से निकला हर लफ्ज़ कविता ही तो है....
ReplyDeleteअनु
कविता लिखने की सबकी अपनी२ शैली है लेकिन लय छंद और व्याकरण में बाँधकर अपने भावों को लिखकर प्रगट करना सबके बस की बात नही होती,,,
ReplyDeleteRecentPOST: रंगों के दोहे ,
जिन्हें कोई रचता है शब्दों में
ReplyDeleteऔर मुक्त हो कर
कहता है
वही कविता है।
बहुत सुन्दर...बधाई...
मुझे हौसला देने के लिए शुक्रिया :))
ReplyDeleteशुभकामनायें !!
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 23/03/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteसही है..
ReplyDeleteसही है..
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
ReplyDeleteदिल की बात कविता से कम नहीं...