जगह जगह बने
धूल-गर्द में ढके
निर्जन
शहीद स्मारक
आज होंगे गुलज़ार
और उनमें गूँजेंगी
भगत सिंह,सुख देव और
राज गुरु की अमर कथाएँ
सर्वस्व समर्पण की
गाथाएँ
जोशीले गीत
निकल कर बाहर
किताबों के पन्नों से
करेंगे जुगलबंदी
ज़ुबान और होठों से
सिर्फ आज के ही दिन
हमें याद आएगा
उन जाने
और अनजानों का
एहसान
हम और
हमारी पीढ़ी
कल से
फिर शुरू कर देगी
सरफरोशी को
भूल कर
एहसान फरामोशी की
दस्तूरी
दास्तान!
~यशवन्त माथुर©
बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteसच ही आज हम कितने एहसान फरामोश हो गए हैं .... सच को कहती अच्छी रचना
ReplyDeleteवाह बिलकुल सही कहा यशवंत जी
ReplyDeleteगुज़ारिश : ''..इन्कलाब जिन्दाबाद ..''
उन्हें कभी न भुलाया जाय ....
ReplyDeleteकल से
ReplyDeleteफिर शुरू कर देगी
सरफरोशी को
भूल कर
एहसान फरामोशी की
दस्तूरी
दास्तान!
सत्य कथन !
सार्थक अभिव्यक्ति !!
शुभकामनायें !!
सही कहा तुमने
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
पधारें "चाँद से करती हूँ बातें "
यशवंत भाई, आपकी पंक्तियों में यथार्थ की बेबाकी बड़ी ही सटीक बैठती है .. अच्छी रचना ...
ReplyDeleteहोली की अग्रिम सादर शुभकामनाएं आपको !! :)
हम और
ReplyDeleteहमारी पीढ़ी
कल से
फिर शुरू कर देगी
सरफरोशी को
भूल कर
एहसान फरामोशी की
दस्तूरी
दास्तान!
यही तो त्रासदी है