24 March 2013

ज़बरदस्ती

कभी कभी
कुछ सवाल
ज़बरदस्ती के लगते हैं
और उनके जवाब भी
देने पड़ते हैं
ज़बरदस्ती ही ।
क्योंकि
मन
न होने पर भी
इच्छा
न होने पर भी 
बचना मुश्किल होता है
ज़बरदस्ती के
अनचाहे सवालों से
और
उससे भी कठिन होता है
तलाशना
ज़बरदस्ती के
ज़बरदस्त जवाबों को ।
मैंने पढ़ा तो नहीं
मनोविज्ञान
पर अब उत्सुकता है
ज़बरदस्ती की
मानसिकता को
समझने की।

~यशवन्त माथुर©

11 comments:

  1. अनछुआ विषय पर कविता.. बहुत खूब

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  2. अनछुआ विषय पर कविता.. बहुत खूब

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  3. अनछुआ विषय पर कविता.. बहुत खूब

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  4. जबरदस्ती का मनोविज्ञान निःसंदेह मानसिक असंतुलन की अवस्था है. और हम सभी को कभी न कभी इससे रूबरू होना ही होता है. गहरी सोच-समझ की रचना, शुभकामनाएँ.

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  5. बहुत सही कहा है आपने आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें शख्सियत होने की सजा भुगत रहे संजय दत्त :बस अब और नहीं . .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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  6. सही कहा आपने कभी - कभी हमें न चाहते हुए भी कुछ सवालों के जवाब देने पड्तें हैं ...

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  7. ज़बरदस्ती की
    मानसिकता को
    समझने की।
    बात नहीं सब के वश की
    शुभकामनायें !!

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  8. कभी कभी अनचाहे सवालों का भी सामना करना ही पड़ता है,बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  9. जीवन में ऐसे बहुत से मौके आते है जब न चाहते हुए भी कुछ काम करने पड़ते है इसे ही तो समझौता कहते हैं -विचारनीय विषय है
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  10. बहुत सुन्दर...होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  11. उससे भी कठिन होता है
    तलाशना
    ज़बरदस्ती के
    ज़बरदस्त जवाबों को ।

    अनचाहा प्रेम ही क्यों न हो सब कुछ अटपटा ही लगता है

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