मुझ में नहीं सामर्थ्य
समझने की
किसी कथा
और
उसकी अंतर्कथा का
रहस्य
क्योंकि
मेरे भीतर का पाठक
जलते हुए रोम में
नीरो की
बांसुरी के स्वरों का
आनंद लेते हुए
असमर्थ है
पात्रों के चरित्र
और उनके चित्र की
आंतरिक और
वाह्य
आड़ी -तिरछी
रेखाओं को
समझने में।
©यशवन्त माथुर©
प्रतिलिप्याधिकार/सर्वाधिकार सुरक्षित ©
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बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत खूब ....गहरी और संवेदनशील सोच
ReplyDeleteअन्तर्द्वंद की अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeletelatest postउड़ान
teeno kist eksath"अहम् का गुलाम "
गहन अनुभूति... शुभकामनायें
ReplyDeleteसुलझे मन के लिए गुत्थियां ठीक नहीं.
ReplyDeleteबहुत ही गहन अनुभूति और सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteआंतरिक और
ReplyDeleteवाह्य
आड़ी -तिरछी
रेखाओं को
समझने में।
ऐसी बात
समझनें के लिए
वैसा बनना पड़ता है
जो सबके लिए
सम्भव नहीं
शुभकामनायें !!
बहुत गहन अनुभूति... शुभकामनायें यशवंत
ReplyDeletesach haikai baar.. yun lagta hai kuchh aisagoodh chhupa hai toehsaaskarata hai hai par kya..kaisa....
ReplyDeletesunder lekhan
shubhkamnayen