13 March 2013

मुझ में नहीं सामर्थ्य

मुझ में नहीं सामर्थ्य
समझने की
किसी कथा
और
उसकी अंतर्कथा का
रहस्य
क्योंकि  
मेरे भीतर का पाठक
जलते हुए रोम में
नीरो की
बांसुरी के स्वरों का 
आनंद लेते हुए
असमर्थ है
पात्रों के चरित्र
और उनके चित्र की
आंतरिक और
वाह्य
आड़ी -तिरछी 
रेखाओं को
समझने में।

©यशवन्त माथुर©

9 comments:

  1. बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

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  2. बहुत खूब ....गहरी और संवेदनशील सोच

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  3. अन्तर्द्वंद की अच्छी अभिव्यक्ति
    latest postउड़ान
    teeno kist eksath"अहम् का गुलाम "

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  4. गहन अनुभूति... शुभकामनायें

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  5. सुलझे मन के लिए गुत्थियां ठीक नहीं.

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  6. बहुत ही गहन अनुभूति और सार्थक प्रस्तुति.

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  7. आंतरिक और
    वाह्य
    आड़ी -तिरछी
    रेखाओं को
    समझने में।
    ऐसी बात
    समझनें के लिए
    वैसा बनना पड़ता है
    जो सबके लिए
    सम्भव नहीं
    शुभकामनायें !!

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  8. बहुत गहन अनुभूति... शुभकामनायें यशवंत

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  9. sach haikai baar.. yun lagta hai kuchh aisagoodh chhupa hai toehsaaskarata hai hai par kya..kaisa....

    sunder lekhan

    shubhkamnayen

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