दामिनी...
सोनी सोरी ...
और भी हैं कई
जिनके नाम
मालूम हैं हमें
और कुछ गुमनाम होकर
वक़्त और भाग्य की चोट
सह रही हैं
या गिन रही हैं
घड़ी की टिक टिक
हर पल
कुछ सांसें
उखड़ चुकी हैं
कुछ सांसें
मांगती हैं
हर रोज़ हिसाब
घुट घुट कर
जीने का
यह सिलसिला
चलता रहेगा
भाषण गूँजते रहेंगे
लिखावटें
छपती रहेंगी
स्याह तस्वीरें
दिखती रहेंगी
जब तक
बदलेगी नहीं
सोच
और दृष्टि
और जब तक
हमें
होगी नहीं पहचान
सफ़ेद मुखौटे मे
छुपे
काले चेहरों की !
©यशवन्त माथुर©
सोच
ReplyDeleteऔर दृष्टि
बदलेगी कब तक ........
बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आभार प्रथम पुरुस्कृत निबन्ध -प्रतियोगिता दर्पण /मई/२००६ यदि महिलाएं संसार पर शासन करतीं -अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आज की मांग यही मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteबदकिस्मती है कि ये सब वाकई चलता ही रहेगा
ReplyDeletehaan ye tho hai .....par prashn wahi ka wahi ....kab tak ??
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