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12 April 2013

मिटना ही होगा एक दिन

मिटना ही होगा एक दिन, सरहदों की लकीरों को। 
मिटना ही होगा एक दिन,हवाओं की मजबूरी को॥

यूं  तो घट रही हैं,ये दूरियाँ मुल्को की। 
फिर भी बढ़ रही हैं,अब दूरियाँ दिलों की॥

एक शहर बनेगी दुनिया,हर दिल की दिल वालों की। 
एक जुबां बोलेगी दुनिया,बस अपने ही ख्यालों की॥ 

रुख पलटना ही होगा अब नक्शों की तसवीरों को। 
एक दिन मिटना ही होगा,सरहदों की लकीरों को॥ 

~यशवन्त माथुर©

9 comments:

  1. यूं तो घट रही हैं,ये दूरियाँ मुल्को की।
    फिर भी बढ़ रही हैं,अब दूरियाँ दिलों की॥

    सुन्दर रचना यशवंत भाई.

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  2. तथास्तु .....
    जिस दिन होगा ऐसा लाजबाब होगा
    जल्द से जल्द हो
    शुभकामनायें !!

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  3. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (13 -4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  4. .भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू गयी आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें नरेन्द्र से नारीन्द्र तक .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1

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  5. बहुत सुन्दर | पढ़कर आनंद आया | आभार | नववर्ष की मंगल कामनाएं |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  6. रुख पलटना ही होगा अब नक्शों की तसवीरों को।
    एक दिन मिटना ही होगा,सरहदों की लकीरों को॥
    वाह ..बेहतरीन!

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  7. सार्थक रचना

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  8. बेहतरीन रचना
    पधारें "आँसुओं के मोती"

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  9. काश! ऐसा ही हो..!
    नया ज़माना आएगा...
    ~God Bless!!!

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