मिटना ही होगा एक दिन, सरहदों की लकीरों को।
मिटना ही होगा एक दिन,हवाओं की मजबूरी को॥
यूं तो घट रही हैं,ये दूरियाँ मुल्को की।
फिर भी बढ़ रही हैं,अब दूरियाँ दिलों की॥
एक शहर बनेगी दुनिया,हर दिल की दिल वालों की।
एक जुबां बोलेगी दुनिया,बस अपने ही ख्यालों की॥
रुख पलटना ही होगा अब नक्शों की तसवीरों को।
एक दिन मिटना ही होगा,सरहदों की लकीरों को॥
~यशवन्त माथुर©
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यूं तो घट रही हैं,ये दूरियाँ मुल्को की।
ReplyDeleteफिर भी बढ़ रही हैं,अब दूरियाँ दिलों की॥
सुन्दर रचना यशवंत भाई.
तथास्तु .....
ReplyDeleteजिस दिन होगा ऐसा लाजबाब होगा
जल्द से जल्द हो
शुभकामनायें !!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (13 -4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
.भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू गयी आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें नरेन्द्र से नारीन्द्र तक .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1
ReplyDeleteबहुत सुन्दर | पढ़कर आनंद आया | आभार | नववर्ष की मंगल कामनाएं |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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रुख पलटना ही होगा अब नक्शों की तसवीरों को।
ReplyDeleteएक दिन मिटना ही होगा,सरहदों की लकीरों को॥
वाह ..बेहतरीन!
सार्थक रचना
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteपधारें "आँसुओं के मोती"
काश! ऐसा ही हो..!
ReplyDeleteनया ज़माना आएगा...
~God Bless!!!