न यह गजल है
न कविता है
इस में न छंद
न रस ही मिलता है
यह तो बस जज़्बात है
और कुछ मन की बात है
जो व्याकरण के नियमों में
न बंधता है न घुलता है
इसे ऐसा ही रहने दो
ये जैसा है बस वैसा है
बिखरा बिखरा सा कुछ
इन 'पंक्तियों' के रूप में
जो सोचता है मन
वो ही कहता है
न यह गजल है
न कविता है
~यशवन्त माथुर©
जो सोचता है मन वही अन्तर्मन का दर्पण है .जो कविता के रुप में पन्नों पर बिखर जाते है सुन्दर भाव..
ReplyDeleteजो है मुझे
ReplyDeleteभाया है
लुभाया है
बुलाया है
शुभकामनायें ...
जो भी है ...पढ़कर अच्छा लगा ...सच्चा लगा ...!!!!
ReplyDeleteमन के जज्बात के लिए किसी रस छंद की आवश्यकता नही,बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteअसल तो अहि है जो मन कहता है .. बस दुनिया इसे कोई नम दे देती है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....बेहतरीन प्रस्तुति!!!
ReplyDeleteपधारें "आँसुओं के मोती"
आपकी इस प्रविष्टि क़ी चर्चा सोमवार [15.4.2013]के चर्चामंच1215 पर लिंक क़ी गई है,
ReplyDeleteअपनी प्रतिक्रिया देने के लिए पधारे आपका स्वागत है | सूचनार्थ..
विचारपूर्ण
ReplyDeleteसुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
This was a wonderful post...
ReplyDeleteThis morning I nominate you for creative blogger award...you can visit my blog for more details....
http://apparitionofmine.blogspot.in/
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आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 17/04/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeletezazbat hi kafi hai ,banaye rakhiye bahut khoob
ReplyDeleteजो सोचता है मन
ReplyDeleteवो ही कहता है
न यह गजल है
न कविता है
यही तो सच्ची कविता है .....
बढ़िया है......
ReplyDeleteक्या है इससे क्या करना.....
सस्नेह
अनु
खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |
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