17 April 2013

काँटों से भरे बगीचों में


फोटो साभार-गूगल इमेज सर्च 
काँटों से भरे बगीचों में
खोजता फिर रहा गुलाबों को 
रौनक यहाँ पे कहीं नहीं
बस ख्वाब लुभाते ख्वाबों को
 
कागज़ के पन्ने हैं फैले
कलम ढूंढती दवातों को
अब वो दौर है बीत रहा
कान सुनते खटरागों को

हर तरफ बस शोर ही शोर
दिन, रात और ठंडी भोर
देखूँ चाहे जिस भी ओर
कहीं न पाता पूरा ठौर 

वेश बदलती मशीनों में
कैसे पहचानूँ इन्सानों को
काँटों से भरे बगीचों में
खोजता फिर रहा गुलाबों को  ।
 

~यशवन्त माथुर©

14 comments:

  1. वेश बदलती मशीनों में
    कैसे पहचानूँ इन्सानों को
    काँटों से भरे बगीचों में
    खोजता फिर रहा गुलाबों को । बहुत खूब ...सुन्दर लिखा है .

    ReplyDelete
  2. कागज़ के पन्ने हैं फैले
    कलम ढूंढती दवातों को
    अब वो दौर है बीत रहा
    कान सुनते खटरागों को
    सच्ची बात !!
    हार्दिक शुभकामनायें ......

    ReplyDelete
  3. इस मशीनी दौर में इंसान भी मशीनी हो गया है, संवेदनहीन... सार्थक रचना. शुभकामनायें

    ReplyDelete
  4. सुन्दर रचना |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    ReplyDelete
  5. वेश बदलती मशीनों में
    कैसे पहचानूँ इन्सानों को
    काँटों से भरे बगीचों में
    खोजता फिर रहा गुलाबों को । ...सार्थक रचना. शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर ...यही हाल है आजकल

    ReplyDelete
  7. गहन अभिवयक्ति......

    ReplyDelete
  8. बस ख्वाब लुभाते ख्वाबों को

    सचमुच ऐसा कई बार महसूस किया

    ReplyDelete
  9. बस ख्वाब लुभाते ख्वाबों को

    सचमुच ऐसा कई बार महसूस किया

    ReplyDelete
  10. वेश बदलती मशीनों में
    कैसे पहचानूँ इन्सानों को
    काँटों से भरे बगीचों में
    खोजता फिर रहा गुलाबों को

    बेहतरीन प्रस्तुति!!
    पधारें बेटियाँ ...

    ReplyDelete
  11. गुलाब तो मिलेंगे काँटों में ही ..सीखना होगा काँटों से दामन बचाना हमें ही..

    ReplyDelete
  12. वेश बदलती मशीनों में
    कैसे पहचानूँ इन्सानों को
    काँटों से भरे बगीचों में
    खोजता फिर रहा गुलाबों को ।

    त्रासदी को बयान करती खुबसूरत रचना

    ReplyDelete
  13. वेश बदलती मशीनों में
    कैसे पहचानूँ इन्सानों को

    वाह बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  14. wahh,, kya khoob kaha hai ..
    वेश बदलती मशीनों में
    कैसे पहचानूँ इन्सानों को

    ReplyDelete