25 April 2013

बदलाव नहीं होगा क्योंकि.......

सिर्फ नारे हैं यहाँ
कोई ज़िंदाबाद है
कोई मुर्दाबाद है
कहीं जुलूस हैं
हाथों में तख्तियाँ हैं
मोमबत्तियाँ हैं

सिर्फ आक्रोश है यहाँ
विरोध है
कुम्हार भी है
और उसकी चाक भी है
मगर नदारद है
बदलाव की चिकनी मिट्टी
क्योंकि
उसमे मिली हुई है रेत
टांग खिंचाई की।   


~यशवन्त माथुर©

16 comments:

  1. Annapurna Bajpai
    बहुत सही कहा यशवंत जी , उम्दा प्रस्तुती के लिए आभार ।

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  2. Ramakant Singh
    सोते को जगाया जा सकता है ये तो आँख खोलकर सोने का नाटक कर रहे हैं

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  3. vibha rani Shrivastava
    .
    खुबसुरत अभिव्यक्ति

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  4. Saras Darbari
    Lekin ummeedein phir bhi ug aati hain belon si lipti hui mazboot tanon par ....sirf ukhaad phekin jaane ke liye

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  5. Snigdha Ghosh Roy
    kya itna bhi kam hai k kam se kam hum kuchh keh hi lete hain...kuchh to aise uneende hain ki unko kehne sunne ki bhi sudh nahi....

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  6. Rewa tibrewal
    sahi kaha yashwant bhai.......par badlav jaroori hai

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  7. Anita Nihalani
    नहीं, व्यर्थ नहीं जायेगा यह विरोध इस बार..

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  8. Kailash Sharma

    कुम्हार भी है
    और उसकी चाक भी है
    मगर नदारद है
    बदलाव की चिकनी मिट्टी

    .....बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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  9. Vivek Rastogi
    बस बदलाव का ही इंतजार है..

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  10. sadhana vaid
    बदलाव आये भी तो भला कैसे ! जो कारक बदलाव लाने में सक्षम हैं वे ना तो आँखें खोल कर हकीकत से रू ब रू होना चाहते हैं ना ही कोई प्रयास करना चाहते हैं ! शायद उन्हें डर है कि कहीं वे खुद या उनके निकट के परिजन इस लपेटे में न आ जाएँ !

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  11. तुषार राज रस्तोगी
    बहुत बढ़िया

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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  12. Rewa tibrewal
    sahi kaha yashwant bhai.......par badlav jaroori hai

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  13. Satish Saxena
    अच्छे दिन भी आयेंगे ..

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  14. Anandbala Sharma
    बात सही है पर उम्मीद पर दुनिया कायम है.

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  15. onkar kedia
    हाँ, ज़रुरी है बदलाव

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  16. ismat zaidi
    bahut sundar aur sateek rachna ! lekin ham phir bhi aashanvit hain

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