सिर्फ नारे हैं यहाँ
कोई ज़िंदाबाद है
कोई मुर्दाबाद है
कहीं जुलूस हैं
हाथों में तख्तियाँ हैं
मोमबत्तियाँ हैं
सिर्फ आक्रोश है यहाँ
विरोध है
कुम्हार भी है
और उसकी चाक भी है
मगर नदारद है
बदलाव की चिकनी मिट्टी
क्योंकि
उसमे मिली हुई है रेत
टांग खिंचाई की।
~यशवन्त माथुर©
Annapurna Bajpai
ReplyDeleteबहुत सही कहा यशवंत जी , उम्दा प्रस्तुती के लिए आभार ।
Ramakant Singh
ReplyDeleteसोते को जगाया जा सकता है ये तो आँख खोलकर सोने का नाटक कर रहे हैं
vibha rani Shrivastava
ReplyDelete.
खुबसुरत अभिव्यक्ति
Saras Darbari
ReplyDeleteLekin ummeedein phir bhi ug aati hain belon si lipti hui mazboot tanon par ....sirf ukhaad phekin jaane ke liye
Snigdha Ghosh Roy
ReplyDeletekya itna bhi kam hai k kam se kam hum kuchh keh hi lete hain...kuchh to aise uneende hain ki unko kehne sunne ki bhi sudh nahi....
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ReplyDeleteRewa tibrewal
sahi kaha yashwant bhai.......par badlav jaroori hai
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Anita Nihalani
ReplyDeleteनहीं, व्यर्थ नहीं जायेगा यह विरोध इस बार..
Kailash Sharma
ReplyDeleteकुम्हार भी है
और उसकी चाक भी है
मगर नदारद है
बदलाव की चिकनी मिट्टी
.....बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
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Vivek Rastogi
ReplyDeleteबस बदलाव का ही इंतजार है..
sadhana vaid
ReplyDeleteबदलाव आये भी तो भला कैसे ! जो कारक बदलाव लाने में सक्षम हैं वे ना तो आँखें खोल कर हकीकत से रू ब रू होना चाहते हैं ना ही कोई प्रयास करना चाहते हैं ! शायद उन्हें डर है कि कहीं वे खुद या उनके निकट के परिजन इस लपेटे में न आ जाएँ !
तुषार राज रस्तोगी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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Rewa tibrewal
ReplyDeletesahi kaha yashwant bhai.......par badlav jaroori hai
Satish Saxena
ReplyDeleteअच्छे दिन भी आयेंगे ..
Anandbala Sharma
ReplyDeleteबात सही है पर उम्मीद पर दुनिया कायम है.
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onkar kedia
ReplyDeleteहाँ, ज़रुरी है बदलाव
ismat zaidi
ReplyDeletebahut sundar aur sateek rachna ! lekin ham phir bhi aashanvit hain