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26 April 2013

किस की तरह बनूँ ?

एक फूल होता है 
जो सुबह खिल कर
मुस्कुराता  है
शाम होते होते
मुरझाता है
और गहरी रात के
आते आते
बिखर जाता है
मिल जाता है
यादों की धूल में ।

और एक काँटा होता है 
जो अपने बीच में
पनाह देता है
खूबसूरत फूल को
जो अड़ा रहता है
अपनी ही ज़िद्द पर
जिसके भीतर
और बाहर 
होती है
दर्द की तीखी चुभन
जो कभी हाथों को
चुभता है
और कभी दिलों को
संभाले रखता है खुद को
सुबह, दोपहर
और रात
स्थायित्व के साथ। 

सोच रहा हूँ 
किस की तरह बनूँ ?
फूल बनूँ ?
या काँटा ?
मेरी समझ में
नहीं आता। 

~यशवन्त माथुर©

24 comments:

  1. Ramakant Singh

    VERY CERTAINTHE WAY OF LIFE

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  2. indira mukhopadhyay
    bahut sundarta se abhivyakt kiya hai apni uljhan ko.

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  3. Kajal Kumar
    तीनों ही रचनाएं बेहतर हैं. अंतिम अच्छी चुटीली है

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  4. Priti Dabral
    bahut achha likha hai
    kante rehte hain adig se
    samay se ruke se
    par chubhte hai tees se
    na bano tum kanta

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  5. Saras Darbari
    काँटे स्पर्श करने पर असहनीय पीड़ा भी देते हैं ...यह आप पर है आप किस पहलू को अपनाना चाहें

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  6. Snigdha Ghosh Roy
    kyu kisi aur ki tarah banne ka hai armaan...kuchh apni hi nayi panao pehchaan... jo phool na kar paaya aur kaanta na nibha paaye tum hi kar jao....

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  7. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
    बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
    साझा करने के लिए धन्यवाद

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  8. sandhya sharma
    स्थायित्व का साथ हो फूलों की खूबसूरती के साथ... सुन्दर भाव...

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  9. Anita Nihalani
    जो दोनों में संतुलन करना जानता है, या दोनों के पार हो जाता है वही असलियत को जन पाता है..

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  10. Rajendra Nath Mehrotra
    Gulshan ki phakat Phoolon se nahi, Kanto se bhi zeenat hoti hai

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  11. vandana gupta
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (27 -4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  12. Kavita Rawat
    फूल के साथ कांटा हिफाज़त का काम करता है ..साथ साथ अच्छे लेकिन अलग अच्छे नहीं ..
    बहुत बढ़िया रचना

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  13. Rewa tibrewal
    jes luved to read this post of urs

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  14. Rajendra Kumar
    बहुत खूब! बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति

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  15. Kailash Sharma
    बहुत सुन्दर रचना...

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  16. Virendra Kumar Sharma

    सुख दुख में सम भाव बनो

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  17. Nidhi Tandon
    जैसे हो वैसे ही रहो..किसी की तरह मत बनो .
    बढ़िया...यशवंत

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  18. तुषार राज रस्तोगी
    बढ़िया |

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  19. sadhana vaid
    आपकी रचना ने एक शेर की याद दिला दी --
    रफीकों से रकीब अच्छे जो जल कर नाम लेते हैं
    गुलों से खार अच्छे हैं जो दामन थाम लेते हैं !
    स्थायित्व तो काँटों में ही होता है पर खुद को मिटा कर औरों तक खुशबू फैलाने का जज़्बा सिर्फ फूलों में ही होता है ! आप क्या चाहते हैं यह तो आप ही जान सकते हैं ! बहुत सुंदर रचना !

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  20. sangeeta swarup
    साधनजी ने सही सुझाव दिया है .... अच्छी प्रस्तुति संशय छोड़ जो चाहते हैं बनिए ।

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  21. rajkumar soni
    बहुत अच्छी रचना है। बधाई..।

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  22. Pravesh Soni
    bahut achha likha ...kaanto ki bhi ahmiyat hoti hai na jaane kyu unhe sab chubhan bhari drashti se hi dekhte hai

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  23. Narendra Parihar
    kanta baniye phoolon ke raste khud aapka swagat karenge

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