आधी रात की
खामोशी में
गूँजते
गीतों की तरह
मंद और ठंडी हवा में
हिलते पत्तों की तरह
खिलने को बेचैन कलियों
और फूलों की
खुशबू की तरह
झूमना चाहता हूँ मैं भी
मन की सरगम के साथ
उस वीरान अंधेरे में
जहां
परछाई भी मांगती है
रोशन उजालों को
रिश्वत में।
~यशवन्त माथुर©
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मन की सारी मुराद पूरी हो .....
ReplyDeleteदिन दुनी रात चौगुनी उन्नति हो ...
शुभकामनायें !!
नहुत सुन्दर...यशवंत
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ReplyDeleteसुंदर
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बहुत बहुत बधाई
बहुत सुन्दर यशवंत भाई.
ReplyDeletesundar bhav
ReplyDeleteबहुत खूब यशवंत जी!
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