बहुत वक़्त से
देखता रहता था
मैं
दीवार पर टंगी
उस तस्वीर को
न जाने कब से टंगी थी
घर के कोने के
उस अंधेरे कमरे में
गर्द की
एक मोटी परत
रुई धुनी रज़ाई की तरह
लिपटी हुई थी
उस तस्वीर से
पर आज .....
पर आज
मन नहीं माना मेरा
उत्सुकता
और रहस्य के चरम ने
रोशन कर ही दिया
अंधेरे कमरे को
और
फिरा ही दिये हाथ
उस तस्वीर पर
गर्द के आवरण में
वह तस्वीर नहीं
एक पुराना शीशा था
जिसमें
अब देख सकता हूँ मैं
परावर्तित होती
खुद की
नयी तस्वीर।
~यशवन्त माथुर©
God Bless U
ReplyDeleteरोशन कर ही दिया
ReplyDeleteअँधेरे कमरे को
फिरा दिये हाथ
उस तस्वीर पर
बढ़िया अभिव्यक्ति !!बहुत सुंदर....
वक्त के साथ परिवर्तन होना अक सहज प्रक्रियाहै , वक्त की सुन्दर तस्बीर खींची है
ReplyDeleteअपनी तस्वीर साफ दिखाई दे यही बहुत है .... सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअच्छा है .. बदलाव कुछ बेहतर बनाता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (15-05-2013) के "आपके् लिंक आपके शब्द..." (चर्चा मंच-1245) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (15-05-2013) के "आपके् लिंक आपके शब्द..." (चर्चा मंच-1245) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबहुत बढिया शुभकामनाएं...
ReplyDeletewaaaaaaah bhot achchi tasvir khinchi hai aapne bhot achchi
ReplyDeleteवाह ! यशवंत जी,आपकी यह कविता बहुत गहरे अर्थ लिए है..भविष्य में इसे आप सच होते हुए देखेंगे..
ReplyDeleteमुझे आप को सुचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि
ReplyDeleteआप की ये रचना 17-05-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।
मुझे आप को सुचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि
ReplyDeleteआप की ये रचना 17-05-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।